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वास्तु टिप्स

मालामाल बनाते हैं इस तरह के प्लाट पर बनाए गए मकान

यदि आप खुद का घर बनाने के लिए प्लाट यह भूमि खरीद रहे हैं तो वास्तु का विशेष ध्यान रखें अन्यथा आपको बाद में परेशानियों को सामना करना पड़ सकता है। प्लाट खरीदते वक्त आपको नीचे दी गई जानकारी का ध्यान अवश्य रखना चाहिए, अन्यथा आपको बाद में परेशानी उठानी पड़ सकती है।

प्लाट की दिशा पश्‍चिम, वायव्य, उत्तर, ईशान या पूर्व की होना चाहिए। उत्तर या ईशान हो तो अति उत्तम।

प्लाट के सामने कोई खंबा, डीपी या बड़ा वृक्ष नहीं होना चाहिए। प्लाट के सामने तीन या चार रास्ते निकले हुए नहीं होना चाहिए। अर्थात प्लाट तीराहे या चौराहे पर नहीं होना चाहिए।

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प्लाट या मकान के फर्श का ढाल पूर्व, उत्तर या ईशान दिशा की ओर होना चाहिए। इसमें भी उत्तर दिशा उत्तम है। दरअसल, सूरज हमारी ऊर्जा का प्रमुख स्रोत है अत: हमारे वास्तु का निर्माण सूरज की परिक्रमा को ध्यान में रखकर होगा तो अत्यंत उपयुक्त रहेगा।

प्लाट की भूमि का भी चयन किसी वास्तुशस्त्री से पूछकर करें। अर्थात घर लेते या बनाते वक्त भूमि का मिजाज भी देख लें। भूमि लाल है, पीली है, भूरी है, काली है या कि पथरीली है? ऊसर, चूहों के बिल वाली, बांबी वाली, फटी हुई, ऊबड़-खाबड़, गड्ढों वाली और टीलों वाली भूमि का त्याग कर देना चाहिए। जिस भूमि में गड्ढा खोदने पर राख, कोयला, भस्म, हड्डी, भूसा आदि निकले, उस भूमि पर मकान बनाकर रहने से रोग होते हैं तथा आयु का ह्रास होता है।

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प्लाट के आसपास कोई अवैध गतिविधियों वाला स्थान, मकान या फैक्ट्री ना हो। जैसे शराब, मांस, मटन, मछली आदि की दुकान, शोर-शराबा करने वाली फैक्ट्री, जुआ सट्टा की गतिविधियां, रेस्टोरेंट, अटालाघर आदि।

श्मशान घाट या कब्रिस्तान के पास या सुनसान जगह पर प्लाट ना खरीदें। प्लाट पर मकान बनाने के पूर्व भूमि को अच्छे से साफ और शुद्ध करके उसकी वास्तुपूजा करवाकर उसमें पीली मिट्टी का उपयोग करते हुए मकान बनाएं।

प्लाट खरीदते वक्त भूमि का परीक्षण भी करना चाहिए। भूमि परीक्षण कई तरह से होता है जैसे एक गड्डा खोदकर उसे पानी से भरा जाता है और फिर उसका परीक्षण किया जाता है।

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भूमि का ढाल भी देखना चाहिये। पूर्व, उत्तर और ईशान दिशा में नीची भूमि सब दृष्टियों से लाभप्रद होती है। आग्नेय, दक्षिण, नैऋत्य, पश्चिम, वायव्य और मध्य में नीची भूमि रोगों को उत्पन्न करने वाली होती है। दक्षिण तथा आग्नेय के मध्य नीची और उत्तर एवं वायव्य के मध्य ऊंची भूमि का नाम ‘रोगकर वास्तु’ है, जो रोग उत्पन्न करती है। अत: भूमि का चयन करते वक्त किसी वास्तुशास्त्री से भी पूछ लें।
सूर्य के बाद चंद्र का असर इस धरती पर होता है तो सूर्य और चंद्र की परिक्रमा के अनुसार ही धरती का मौसम संचालित होता है। उत्तरी और दक्षिणी ध्रुव धरती के दो केंद्रबिंदु हैं। उत्तरी ध्रुव जहां बर्फ से पूरी तरह ढंका हुआ एक सागर है, जो आर्कटिक सागर कहलाता है वहीं दक्षिणी ध्रुव ठोस धरती वाला ऐसा क्षेत्र है, जो अंटार्कटिका महाद्वीप के नाम से जाना जाता है। ये ध्रुव वर्ष-प्रतिवर्ष घूमते रहते हैं।

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दक्षिणी ध्रुव उत्तरी ध्रुव से कहीं ज्यादा ठंडा है। यहां मानवों की बस्ती नहीं है। इन ध्रुवों के कारण ही धरती का वातावरण संचालित होता है। उत्तर से दक्षिण की ओर ऊर्जा का खिंचाव होता है। शाम ढलते ही पक्षी उत्तर से दक्षिण की ओर जाते हुए दिखाई देते हैं। अत: पूर्व, उत्तर एवं ईशान की और जमीन का ढाल होना चाहिए।

इसका मतलब यह कि दक्षिण और पश्चिम दिशा उत्तर एवं पूर्व से ऊंची रहने पर वहां पर निवास करने वालो को धन, यश और निरोगिता की प्राप्ति होती है। इसके विपरित है तो धन, यश और सेहत को भारी नुकसान उठाना पड़ सकता है। हालांकि किसी वास्तुशास्‍त्री से इस संबंध में जरूर सलाह लें क्योंकि हमें नहीं मालूम है कि आपके घर की दिशा कौन-सी है। दिशा के अनुसार ही ढाल का निर्णय लिया जाता है।यदि आपके मकान की भूमि का ढाल वास्तु अनुसार है तो निश्चित ही वह आपको मालामाल बना देगा। लेकिन यदि वास्तु अनुसार नहीं है तो वह आपको कंगाल भी कर सकता है।

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महेश के. शिवा ganeshavoice.in के मुख्य संपादक हैं। जो सनातन संस्कृति, धर्म, संस्कृति और हिन्दी के अनेक विषयों पर लिखतें हैं। इन्हें ज्योतिष विज्ञान और वेदों से बहुत लगाव है।
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