ShivJi शिव को हिन्दू धर्मशास्त्र में एक क्रोधी देव के रूप में प्रस्तुत किया गया। चांहे वो शिव का तीसरा नेत्र खोलना हो अथवा शिव का तांडव।
धार्मिक क्रिया कलाप में विभूति माथे पर लगाना, शिव का जलाभिषेक करना, बेल पत्थर और उसकी पत्तियों को शिवलिंग पर चढ़ाना आदि आदि हैं।
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शिव को जल चढ़ाना या जलाभिषेक का अर्थ यही है कि जल से शिव के क्रोध को शांत करना अर्थात ठंडक देना। इसी कारण से शिव का स्थान कैलाश बताया गया है, जंहा काफी ठंडक रहती है।
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शिव को बेल अथवा बेल पत्तियां भी ठंडक देने के लिए चढ़ाई जाती हैं। धतूरा चढ़ाने के दो कारण हैँ। धतूरा विष होता है, शिव के गले मे व्याप्त विष को समाप्त करने के लिए धतूरा चढ़ाया जाता है। धतूरा चढ़ाने का दूसरा कारण है कि धतूरा से नशा भी चढ़ता है।
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शिव का एक रूप अघोरी, औघड़ का भी है, जो तंत्र साधक हैं। ऐसा माना जाता है कि नशा थोड़ी देर के लिए ध्यान केंद्रित कर देता है। इसका सुधरा रूप गांजे के रूप में आता है। साधु और औघड़ गांजे का उपयोग ध्यान साधना और मस्तिष्क के एकाग्र रखने में करते हैं। अतः धतूरा चढ़ावा औघड़ सम्प्रदाय की शिव को भेंट है।
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शिव पिंडी पर भभूति(तीन भभूति की रेखाएं), और यंहा तक व्यक्ति के स्वयं के मस्तिष्क पर भभूति, इस बात की सूचक हैं कि शरीर का अंत मे नाश हो कर राख में परिवर्तित हो जाता है। अतः सदैव इस सत्य का स्मरण साधक को रंहे, शिव की पिंडी और साधक मस्तिष्क पर विभूति का लेप करते हैं। अघोरी भी शरीर पर मृतक शरीर की राख का लेप इसीलिये करते है, की शरीर सत्य नही, सत्य कुछ और है इसलिये ये लोग शरीर की आवश्यकता का दमन भी करते हैं।
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