Shami विश्व की प्राचीनतम सभ्यता और हमारी वैभवशाली हिंदू सनातन संस्कृति का गौरवगान करता ये लेख, पुराणानुसार जो सप्तनगरीयाँ है-अयोध्या, मथुरा, हरिद्वार, काशी, कांची, अवंतिका (उज्जैन) और द्वारका..कभी समय मिले तो मंदिर प्रांगण या शहर के किसी एकांत जगह विचरण करते वक़्त ध्यान दीजियेगा की आपके आसपास सबसे अधिक कौनसे पेड़-पौधे है ? शमी तेजस्विता एवं दृढता का प्रतीक है। इसमें प्राकृतिक तौर पर अग्नितत्व की प्रचुरता होती है इसलिए इसे यज्ञ में अग्नि को प्रज्जवलित करने हेतु उपयोग में लाया जाता है।
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पौराणिक मान्यताओ के अनुसार:-
मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीरामजी ने लंका पर आक्रमण करने से पहले शमी के वृक्ष के सम्मुख अपनी विजय के लिए प्रार्थना की थी। लंका विजय के बाद भी श्रीराम ने शमी वृक्ष का पूजन किया था।
महाभारत काल में पांडवों ने अपने अज्ञातवास के दौरान शमी के पौधे में ही अपने अस्त्र-शस्त्र छिपाए थे।
कवि कालिदास को शमी के वृक्ष के नीचे बैठकर तपस्या करने से ही ज्ञान की प्राप्ति हुई थी। इसी वजह से शमी का काफी अधिक महत्व है।
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शमी का पौधा घर के ईशाण कोण (पूर्वोत्तर) में लगाना लाभकारी माना गया है। इसे घर में मुख्य द्वार के बाएं तरफ लगाना चाहिए। शमी का पौधा लगाने से कई प्रकार से वास्तुदोष दूर होते हैं। इसे लगाने से घर में नकारात्मक ऊर्जा नहीं आती है।
नवग्रहों में शनि महाराज को दंडाधिकारी का स्थान प्राप्त है, इसलिए जब शनि की दशा या साढ़ेसाती आती है,तब जातक के अच्छे-बुरे कर्मों का पूरा हिसाब होता है इसलिये शनि के कोप से लोग भयभीत रहते हैं।
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पीपल और शमी दो ऐसे वृक्ष हैं, जिन पर शनि का प्रभाव होता है।पीपल का वृक्ष बहुत बड़ा होता है, इसलिए इसे घर में लगाना संभव नहीं होता।
शनिवार की शाम को शमी वृक्ष की पूजा की जाए और इसके नीचे सरसों तेल का दीपक जलाया जाए, तो शनि दोष से कुप्रभाव से बचाव होता है।
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शनिवार को पेड़ के सबसे निचले भाग में उड़द की काली दाल और काले तिल चढ़ाएं।
शमी के वृक्ष पर कई देवताओं का वास होता है।सभी यज्ञों में शमी वृक्ष की समिधाओं का प्रयोग शुभ माना गया है।शमी के कांटों का प्रयोग तंत्र-मंत्र बाधा और नकारात्मक शक्तियों के नाश के लिए होता है। शमी के पंचांग (फूल, पत्ते, जड़ें, टहनियां और रस) का इस्तेमाल कर शनि संबंधी दोषों से जल्द मुक्ति पाई जा सकती है।
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शमी को वह्निवृक्ष भी कहा जाता है। आयुर्वेद की दृष्टि में तो शमी अत्यंत गुणकारी औषधी मानी गई है। कई रोगों में इस वृक्ष के अंग काम आते हैं।