Batuk Bhairav : सनातन परंपरा में विभिन्न देवी-देवताओं की पूजा का विधान है, लेकिन इनमें सबसे जल्दी प्रसन्न होकर आपको बड़ी से बड़ी विपदाओं से निकालने वाले कोई देवता हैं तो वो हैं भगवान कालभैरव। रुद्रयामल तंत्र में 64 भैरव का उल्लेख मिलता है लेकिन अमूमन लोग भैरव के दो स्वरूप की ज्यादा पूजा करते हैं, जिनमें से एक हैं बटुक भैरव और दूसरे काल भैरव। तंत्र ग्रंथों में भगवान भैरव की उत्पत्ति भगवान शिव से मानी गई है, जिनकी पूजा करने वाले साधक को जीवन में कभी भी कोई भय नहीं सताता है।
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बटुक भैरव का स्वरूप
बटुक भैरव स्फटिक के समान शुभ्र वर्ण वाले हैं। उन्होंने अपने कानों कुण्डल धारण किया हुआ है और दिव्य मणियों से से सुशोभित हैं। बटुक भैरव प्रसन्न मुख वाले और अपनी भुजाओं में अस्त्र-शस्त्र धारण किये होते हैं। उनके गले में माला शोभायमान हैं।
कैसे हुई बटुक भैरव की उत्पत्ति
मान्यता है कि प्राचीन काल में एक आपद् नामक राक्षस था, जिसने कठोर तपस्या करके यह वर प्राप्त कर लिया कि उसकी मृत्यु केवल पाँच वर्ष के बालक से ही हो सकती है और वह किसी अन्य प्राणी से नहीं मारा जा सकता है।
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इसके बाद उसने तीनों लोकों में आतंक फैला दिया। ऐसे में जब सभी देवता इस समस्या का समाधान खोजने का विचार कर रहे थे तभी उन देवताओं के शरीर से एक-एक तेजोधारा निकली और उससे एक पंचवर्षीय बटुक की उत्पत्ति हुई, जिसमें अद्भुत तेज था. इसी बटुक ने फिर बाद में आपद् नामक राक्षस का वध किया और बाद में आपदुद्धारक बटुक भैरव के नाम से जाने गये।
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बटुक भैरव की पूजा के लाभ
भगवान भैरव के इस स्वरूप की साधना सभी प्रकार से लाभकारी और मनोकामनाओं को पूरा करने वाली है। रविवार के दिन भगवान बटुक भैरव की साधना करने पर साधक को बल, बुद्धि, विद्या, मान-सम्मान आदि की प्राप्ति होती है।
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यदि आप किसी बड़ी विपदा में फंसे हुए हैं तो उससे बचने के लिए भगवान भैरव की साधना किसी वरदान से कम नहीं है। बटुक भैरव की पूजा सभी संकटों से बचाती हुई शत्रुओं का नाश करती है। ज्योतिष के अनुसार राहु-केतु से संबंधी समस्याओं को दूर करने के लिए भी बटुक साधना अत्यंत फलदायी है।
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