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व्रत एवं त्यौहार

7 जून को है सोम प्रदोष Som Pradosh व्रत, यहां जानिए शुभ मुहूर्त और पूजा की विधि

ज्येष्ठ माह का सोम प्रदोष (Som Pradosh ) व्रत इस बार 7 जून 2021 दिन सोमवार को पड़ रहा है। प्रदोष व्रत की पूजा अगर प्रदोष काल यानी गोधूली बेला (शाम के समय) में की जाए तो अधिक शुभ फलदायी होती है।

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सोम प्रदोष (Som Pradosh) व्रत का शुभ मुहूर्त-
इस बार त्रयोदशी तिथि प्रारंभ 7 जून को सुबह 08.48 मिनट से प्रारंभ होगा तथा 08 जून 2021, मंगलवार को सुबह 11.24 मिनट पर त्रयोदशी तिथि समाप्त होगी।

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पूजा का शुभ मुहूर्त चौघड़िया- सुबह 09:05 से 10:45 तक।
अभिजीत मुहूर्त- प्रात: 11:52 से 12:47: तक। लाभ : 15:46 से 17:26 तक। अमृत : 17:26 से 19:06 तक।

महत्व :
प्रदोष व्रत भोलेशंकर भगवान शिव को समर्पित माना जाता है। सोमवार के दिन आने के कारण प्रदोष व्रत को सोम प्रदोष कहते हैं…। प्रदोष व्रत का दिन के अनुसार, अलग-अलग महत्व माना गया है। सोम प्रदोष व्रत के दिन भक्त भगवान शिव, माता पार्वती, गणेश भगवान और कार्तिकेय जी की पूजा अर्चना की जाती है। इस व्रत को करने से सौभाग्य, आरोग्य, धन, संपदा, सुख, शांति, प्रेम, कर्ज मुक्ति और कई शुभ प्रतिफल मिलते हैं।

पौराणिक मान्यता :
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, चंद्रदेव ने सबसे पहले भगवान शिव की कृपा पाने के लिए प्रदोष व्रत रखा था। दरअसल, किसी पाप के कारण चंद्रदेव को क्षय रोग हो गया था। इसी रोग से मुक्ति के लिए उन्होंने प्रदोष व्रत रखा था। सोम प्रदोष व्रत के दिन पूरे दिन निराहार रहकर व्रत और पूजा-पाठ करें शाम के समय पूजा के बाद फल और दूध ले सकते हैं।

प्रदोष व्रत विधि-
प्रदोष व्रत करने वाले जातकों को सुबह सूर्योदय से पहले बिस्तर त्याग देना चाहिए। इसके बाद नहा-धोकर पूरे विधि-विधान के साथ भगवान शिव का भजन कीर्तन और आराधना करनी चाहिए। इसके बाद घर के ही पूजाघर में साफ-सफाई कर पूजाघर समेत पूरे घर में गंगाजल से पवित्रीकरण करना चाहिए। पूजाघर को गाय के गोबर से लीपने के बाद रेशमी कपड़ों से मंडप बनाना चाहिए। इसके बाद आटे और हल्दी की मदद से स्वस्तिक बनाना चाहिए। व्रती को आसन पर बैठकर सभी देवों को प्रणाम करने के बाद भगवान शिव के मंत्र ‘ॐ नमः शिवाय’ का जाप करना चाहिए।

मंत्र : भगवान शिव का महामृत्युंजय मंत्र

ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिंपुष्टिवर्द्धनम्।
उर्वारुकमिव बन्धानान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्।।

व्रत कथा :
सोम प्रदोष व्रत की पौराणिक व्रतकथा के अनुसार एक नगर में एक ब्राह्मणी रहती थी। उसके पति का स्वर्गवास हो गया था। उसका अब कोई आश्रयदाता नहीं था इसलिए प्रात: होते ही वह अपने पुत्र के साथ भीख मांगने निकल पड़ती थी। भिक्षाटन से ही वह स्वयं व पुत्र का पेट पालती थी।
एक दिन ब्राह्मणी घर लौट रही थी तो उसे एक लड़का घायल अवस्था में कराहता हुआ मिला। ब्राह्मणी दयावश उसे अपने घर ले आई। वह लड़का विदर्भ का राजकुमार था। शत्रु सैनिकों ने उसके राज्य पर आक्रमण कर उसके पिता को बंदी बना लिया था और राज्य पर नियंत्रण कर लिया था इसलिए वह मारा-मारा फिर रहा था। राजकुमार ब्राह्मण-पुत्र के साथ ब्राह्मणी के घर रहने लगा।

एक दिन अंशुमति नामक एक गंधर्व कन्या ने राजकुमार को देखा तो वह उस पर मोहित हो गई। अगले दिन अंशुमति अपने माता-पिता को राजकुमार से मिलाने लाई। उन्हें भी राजकुमार भा गया।

कुछ दिनों बाद अंशुमति के माता-पिता को शंकर भगवान ने स्वप्न में आदेश दिया कि राजकुमार और अंशुमति का विवाह कर दिया जाए। उन्होंने वैसा ही किया। ब्राह्मणी प्रदोष व्रत करती थी। उसके व्रत के प्रभाव और गंधर्वराज की सेना की सहायता से राजकुमार ने विदर्भ से शत्रुओं को खदेड़ दिया और पिता के राज्य को पुन: प्राप्त कर आनंदपूर्वक रहने लगा।

राजकुमार ने ब्राह्मण-पुत्र को अपना प्रधानमंत्री बनाया। ब्राह्मणी के प्रदोष व्रत के महात्म्य से जैसे राजकुमार और ब्राह्मण-पुत्र के दिन फिरे, वैसे ही शंकर भगवान अपने दूसरे भक्तों के दिन भी फेरते हैं। अत: सोम प्रदोष का व्रत करने वाले सभी भक्तों को यह कथा अवश्य पढ़नी अथवा सुननी चाहिए।
इस कथा के बाद भगवान शंकर की आरती उतारे और क्षमा याचना करें।

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महेश कुमार शिवा ganeshavoice.in के मुख्य संपादक हैं। जो सनातन संस्कृति, धर्म, संस्कृति और हिन्दी के अनेक विषयों पर लिखतें हैं। इन्हें ज्योतिष विज्ञान और वेदों से बहुत लगाव है।
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