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सावन का दूसरा मंगलवार, आज करेंगे यह कार्य तो मां पार्वती भरेंगी झोली : Mangla Gauri Vrat

Mangla Gauri Vrat : श्रावण मास में जितने भी मंगलवार पड़ते हैं उन सभी को मंगला गौरी व्रत Mangla Gauri Vrat करने का विधान है। यह व्रत मंगलवार को पड़ता है और इस व्रत में माता गौरी अर्थात् पार्वती जी की पूजा की जाती है, जिसके कारण इस व्रत को मंगला गौरी व्रत कहते हैं । मंगला गौरी व्रत Mangla Gauri Vrat को मोराकत व्रत के नाम से भी जाना जाता है।

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Mangla Gauri Vrat : पुराणों के अनुसार, भगवान शिव और माता पार्वती को श्रावण मास अति प्रिय है। इसीलिए श्रावण मास के सोमवार को शिव जी और मंगलवार को माता गौरी अर्थात् पार्वती जी की पूजा को शास्त्रों में बहुत ही शुभ व मंगलकारी बताया गया है।

Mangla Gauri Vrat : मंगल को वैवाहिक जीवन के लिए अमंगलकारी माना जाता है क्योंकि कुण्डली में मंगल की विशेष स्थिति के कारण ही मांगलिक योग बनता है जो दांपत्य जीवन में कलह और विभिन्न समस्याओं का कारण बनता है । मंगल की शांति के लिए मंगलवार का व्रत और हनुमान जी की पूजा को उत्तम माना जाता है, लेकिन अन्य दिनों की अपेक्षा सावन मास में सोमवार के अलावा मंगलवार का भी शास्त्रों में स्त्रियों के लिए सौभाग्यदायक बताया गया है।

Mangla Gauri Vrat : मंगला गौरी व्रत के प्रभाव से विवाह में हो रहे विलंब समाप्त हो जाते हैं तथा जातक को मनचाहे जीवन-साथी की प्राप्ति होती हैं, दांपत्य जीवन सुखी रहता है तथा जीवन-साथी के प्राणों की रक्षा होती है, पुत्र की प्राप्ति होती है, गृहक्लेश समाप्त होता है, डाइवोर्स तथा सेपरेशन से संबन्धित ज्योतिष योग शांत होते हैं, सुख-सौभाग्य में वृद्धि होती है । इस व्रत को विवाहिता प्रथम श्रावण में पिता के घर (पीहर) में तथा शेष चार वर्ष पति के घर (ससुराल) में करने का विधान है।

Mangla Gauri Vrat : मंगलागौरी व्रत की पूजा विधि
शास्त्रों के अनुसार जो स्त्रियां सावन मास में इस दिन व्रत रखकर मंगला गौरी की पूजा करती हैं, उनके पति पर आने वाला संकट टल जाता है और वह लंबे समय तक दांपत्य जीवन का आनंद प्राप्त करती हैं। इस दिन व्रती को नित्य कर्मों से निवृत्त होकर संकल्प करना चाहिए कि मैं संतान, सौभाग्य और सुख की प्राप्ति के लिए मंगला गौरी व्रत का अनुष्ठान कर रही हूं । तत्पश्चात आचमन एवं मार्जन कर चैकी पर लाल कपड़ा बिछाकर उस पर माता की प्रतिमा व चित्र के सामने उत्तराभिमुख बैठकर प्रसन्न भाव में एक आटे का दीपक बनाकर उसमें सोलह बातियां जलानी चाहिए।

Mangla Gauri Vrat : इसके बाद सोलह लड्डू, सोलह फल, सोलह पान, सोलह लवंग और इलायची के साथ सुहाग की सामग्री और मिठाई माता के सामने रखकर अष्ट गंध एवं चमेली की कलम से भोजपत्र पर लिखित मंगला गौरी यंत्र स्थापित कर विधिवत विनियोग, न्यास एवं ध्यान कर पंचोपचार से उस पर श्री मंगला गौरी का पूजन कर उक्त मंत्र-

कुंकुमागुरुलिप्तांगा सर्वाभरणभूषिताम् ।
नीलकण्ठप्रियां गौरीं वन्देहं मंगलाह्वयाम्।।

इस मंत्र का जप 64,000 बार करना चाहिए । उसके बाद मंगला गौरी की कथा सुनें । इसके बाद मंगला गौरी का सोलह बत्तियों वाले दीपक से आरती करें । कथा सुनने के बाद सोलह लड्डू अपनी सास को तथा अन्य सामग्री ब्राह्मण को दान कर दें ।

Mangla Gauri Vrat : कब करना चाहिए मंगलागौरी व्रत का उद्यापन
पांच साल तक मंगला गौरी पूजन करने के बाद पांचवें वर्ष के श्रावण के अंतिम मंगलवार को इस व्रत का उद्यापन करना चाहिए । ज्योतिषशास्त्र के अनुसार जिन पुरुषों की कुंडली में मांगलिक योग है उन्हें इस दिन मंगलवार का व्रत रखकर भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करनी चाहिए । इससे उनकी कुण्डली में मौजूद मंगल का अशुभ प्रभाव कम होगा और दांपत्य जीवन में खुशहाली आएगी।

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महेश कुमार शिवा ganeshavoice.in के मुख्य संपादक हैं। जो सनातन संस्कृति, धर्म, संस्कृति और हिन्दी के अनेक विषयों पर लिखतें हैं। इन्हें ज्योतिष विज्ञान और वेदों से बहुत लगाव है।
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