Guru Purnima 2021 । आगामी 24 जुलाई को आषाढ़ माह का समापन हो रहा है। इस दिन पूर्णिमा होती है। आषाढ़ मास की पूर्णिमा को गुरु पूर्णिका के रुप में मनाया जाता है। इस दिन आप जिसे भी अपना गुरु मानते हैं, चाहे वो अध्यात्मिक है या अन्य। इस दिन गुरु की पूजा करने का विधान है। कहा जाता है कि इस दिन अपने गुुरु की पूजा करने से पुण्य की प्राप्ति तो होती ही है, साथ ही गुरु के प्रति अपना समर्पण का वक्त भी होता है। इस वर्ष शुक्रवार, 23 जुलाई 2021 को पूर्णिमा तिथि प्रारंभ होगी और शनिवार 24 जुलाई को गुरु पूर्णिमा मनाई जाएगी। Guru Purnima 2021
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गुरु पूर्णिमा पर क्या करें : Guru Purnima 2021
गुरु पूर्णिमा के दिन कनेर के पीले पुष्प लेकर अपने गुरुदेव के पास जाएं, और इन पुष्पों को गुरु के चरणों में अर्पित कर मन ही मन अपनी कामना होने की पूर्ति करे। आपकी इच्छा पूरी हो जाएगी।
अपनी श्रद्धा और हैसियत के अनुसार अपने गुरु को दक्षिणा अवश्य दें। यह दक्षिणा आप एक पीले रंग के लिफाफे में रखकर भी अर्पित कर सकते हैं।
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गुरुदेव को तिलक करें और उनको नारियल अर्पित करने के बाद आरती करें। यदि गुरु माता साथ में है तो उनका भी आशीर्वाद प्राप्त करें।
यदि आप अपने जीवन को सार्थक बनाना चाहते हैं तो जीवन में एक गुरु का होना आवश्यक है। गुरु पूर्णिमा का दिन गुरु दीक्षा लेने के लिए सर्वश्रेष्ठ दिन है।
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गुरु पूर्णिमा के शुभ मुहूर्त : Guru Purnima 2021
23 जुलाई 2021 को प्रात: 10.45 मिनट से पूर्णिमा तिथि प्रारंभ होगी और 24 जुलाई को प्रात: 08.08 मिनट पर पूर्णिमा तिथि समाप्त होगी।
गुरु पूर्णिमा का शुभ समय-
अमृत काल- सुबह 01:00 बजे से सुबह 02:26 मिनट तक।
ब्रह्म मुहूर्त- अलसुबह 04:10 मिनट से 04:58 मिनट तक।
अभिजीत मुहूर्त- दोपहर 12:02 मिनट से 12:56 मिनट तक रहेगा।
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गुरु पूर्णिमा के मंत्र : Guru Purnima 2021
ॐ गुं गुरुभ्यो नम:।
ॐ गुरुभ्यो नम:।
ॐ परमतत्वाय नारायणाय गुरुभ्यो नम:।
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गुरु पूर्णिमा का महत्व और कथा : Guru Purnima 2021
पौराणिक कथाओं के अनुसार गुरु पूर्णिमा पर्व महर्षि वेद व्यास को प्रथम गुरु मानते हुए उनके सम्मान में मनाया जाता है। महर्षि वेद व्यास ही थे जिन्होंने सनातन धर्म के चारों वेदों की व्याख्या की थी। पौराणिक मान्यता के अनुसार माना जाता है कि आषाढ़ पूर्णिमा को महर्षि वेद व्यास का जन्म हुआ था। चूंकि गुरु वेद व्यास ने ही पहली बार मानव जाति को चारों वेद का ज्ञान दिया था इसलिए वे सभी के प्रथम गुरु हुए। इसलिए उनके जन्मदिवस के दिन उनके सम्मान में यह पर्व मनाया जाता है। इसे व्यास पूर्णिमा भी कहा जाता है।
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