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कालसर्प Kalsarp दोष भी चमकाता है किस्मत, काल सर्प योग क्या होता है, इसके प्रभाव और मुहूर्त

Kalsarp कालसर्प योग कष्ट कारक एवं ऐश्वर्यदायक है I सामान्य अवधारणा है की जब राहू और केतु के मध्य में या इनके प्रभाव में सभी ग्रह आ जाते है तो काल सर्प दोष / योग का निर्माण होता है I  जिन लोगो की कुंडली में कालसर्प दोष / योग होता है उनकी कुंडली में पितृ दोष भी अवश्य ही निश्चित माना जाता है परन्तु जिन लोगो की कुंडली में पितृ दोष होता है उनकी कुंडली में जरुरी नही की काल सर्प दोष / योग भी हो I ऐसा नही है ये काल सर्प दोष / योग हमेशा बुरा ही फल देता है I राहू केतु की दशा में विशेष ध्यान रखने की आश्यकता होती है I

काल सर्प दोष / योग से घबराने की आवश्यकता बिलकुल भी नहीं है I ये जीवन बहुत तरक्की और मान सम्मान भी देता है I कुंडली में राहू की स्थिति के अनुसार इसके प्रभाव होते है I

जिन व्यक्तियों की कुंडली में काल सर्प योग विदमान होता है उन व्यक्तियों को जीवन में संघर्ष अधिक करना पड़ता है, अधिक मेहनत के बाद कम फल की प्राप्ति होना I जीवन सांप सीडी के सामान महसूस होता है की बहुत मेहनत करके प्रयास करके 98 पर आये अब हमे सिर्फ दो नंबर की आवश्यकता होती है लक्ष्य की प्राप्ति के लिए परन्तु एक नंबर आता है और 99 पर बैठा सांप काट लेता है और हमे फिर दोबारा से यात्रा शुरू करनी पड़ती है I

सपने में सांप या नाग दिखाई देते है, पानी से डरना , सपने में खुद को पानी में डूबता हुए देखना और पानी से बहार आने के लिए प्रयास करना , स्वयं को हवा में उड़ते हुए देखना , लगातार मन किसी अनिष्ट की आशंका से भयभीत रहना I ऐसे लोगो को भाग्य का सपोर्ट कम ही मिलता है इनको कर्म करने पर ही फल की प्राप्ति होती है I

 

बहुत से ऐसे लोग हुए है जिनकी कुंडली में काल सर्प दोष / योग बना है परन्तु उन्होंने अपने जीवन में उचाईयों को छुआ एक अलग मुकाम हासिल किया I इन लोगो मुख्यत जवाहर लाल नेहरु, धीरुभाई अम्बानी, स्मिता पाटिल, सचिन तेंदुलकर आदि है I इन लोगो इतिहास अगर देखा जाये तो इनके जीवन के शुरुवाती काल में बहुत संघर्ष रहा I इन लोगो को बहुत संघर्षो का सामना करना पड़ा I परन्तु कुंडली में उपस्थित अन्य शुभ योगो के कारण और स्थितिनुसार काल सर्प दोष / योग के नकारात्मक प्रभाव को पूजन अनुष्ठान के द्वारा शांत रखने से ये लोग जीवन की उचाईयों को छूते चले गए I

कालसर्प दोष / पितृ दोष आदि की शांति के लिए पूजन अनुष्ठान के लिए उज्जैन, महाकाल नगरी का विशेष स्थान है I इस धार्मिक स्थान पर काल सर्प दोष , पितृ दोष आदि की शांति करने से इसके सम्पूर्ण नकारात्मक प्रभाव शांत हो जाते है और ग्रहों के शुभ प्रभाव मिलने लगते है I

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कालसर्प दोष भी चमकाता है किस्मत :

कालसर्प दोष का नाम सुनते ही मन में भय उत्पन्न हो जाता है। आमतौर पर माना जाता है कि कालसर्प दोष जीवन में बहुत दु:ख देता है और असफलता का कारण भी होता है। लेकिन कई बार कुंडली में विशेष योगों के चलते यह शुभाशुभ फल भी प्रदान करता है।
– यदि किसी की कुंडली में सूर्य कालसर्प के मुख में स्थित है अर्थात राहु के साथ स्थित हो तथा 1, 2, 3, 10 अथवा 12 वें स्थान में हो एवं शुभ राशि और शुभ प्रभाव में हो तो प्रतिष्ठा दिलवाता है। जातक का स्वास्थ्य उत्तम रहता है। वह राजनीतिक और सामाजिक कार्यों में प्रसिद्धि प्राप्त करता है।
– यदि जातक की कुंडली में मंगल कालसर्प के मुख में स्थित हो तो इसकी शुभ एवं बली स्थिति जातक को पराक्रमी और साहसी तथा व्यवहार कुशल बनाती है। वह हमेशा कामयाब होता है।
– बुध यदि कालसर्प के मुख में स्थित हो तथा शुभ स्थिति और प्रभाव में हो तो ऐसे व्यक्ति को उच्च
शिक्षा मिलती है तथा वह बहुत उन्नति भी करता है।
– राहु के साथ गुरु की युति गुरु-चांडाल योग बनाती है। ज्योतिष में इसे अशुभ माना जाता है।लेकिन अगर यह योग शुभ स्थिति और शुभ प्रभाव में हो तो ऐसे लोगों को अच्छी प्रगति मिलती है।
– कालसर्प के मुख में स्थित शुक्र शुभ स्थिति और प्रभाव में होने पर पूर्ण स्त्री सुख प्रदान करता है। दाम्पत्य जीवन सुखमय होता है।
– यदि कालसर्प के मुख में शनि शुभ स्थिति हो तो ऐसा व्यक्ति परिपक्व और तीक्ष्णबुद्धि वाला होता है।

 

बारह प्रकार के कालसर्प योग

राशि चक्रानुसार कुल बारह राशियाँ हैं जो मेष, वृष, मिथुन, कर्क,सिँह, कन्या, तुला, वृश्चिक, धनु, मकर, कुम्भ तथा मीन हैं I तथा जन्मकुंडली में कुल बारह ही भाव होते हैं जो क्रमश: लग्न, धन,पराक्रम, सुख, सन्तान, रोग, गृहस्थ, आयु, भाग्य, कर्म, लाभ वव्यय भाव हैं I
अब देखें, लग्न में राहू तो सप्तम में केतु और बाकी अन्य सभी ग्रह इन दोनों के एक ओर ही हों, तो कालसर्प योग हुआ I द्वितीय भाव में राहू, अष्टम में केतु,  तीसरे-नवमें, चतुर्थ-दशम, पंचम-एकादश, छठे-बाहरवें, सप्तम-लग्न, अष्टम-द्वितीय, नवम-तृतीय, दशम-चतुर्थ, एकादश-पंचम, बाहरवें-छठे——इस प्रकार 12 कालसर्प योग निर्मित हुए I पलट कर केतु लग्न में और सप्तम राहू, इस प्रकार हर भाव से कालसर्प योग बनेगा I यों 12 x 12 = 144 प्रकार के कालसर्पयोग की सृष्टि होती है I किन्तु प्रमुखरूप से मूलभूत बारह प्रकार के ‘कालसर्प योग’ हैं. जिनके बारे में आपको यहाँ जानकारी दी जा रही है I

अनन्त कालसर्प योग:- जन्मकुंडली में प्रथम भावगत(लग्न) राहु और सप्तमस्थ केतु होने पर अनन्त कालसर्प योग उत्पन्न होता है I

* इस योग में जातक का स्वभाव मनमौजी होता हैएवं जीवन में कईं बार उसे स्वजनों सेधोखा उठाना पडता है I
* जातक दिमाग की अपेक्षा मन से काम लेनेवाला होता है, जिसके फलस्वरूप जीवन के मध्यकाल तक समय-समय पर हानि-परेशानी के अवसरही मिलते हैं I
* मुख व मस्तिष्क अर्थात शरीर में गले तक केहिस्से में किसी रोग का सामना करना पडता है I
* इनके जीवन का सर्वप्रमुख फल ये है कि स्त्री के सहयोग से ही येजीवन में उत्थान करते है और फिर पतन भी स्त्री( पराई) के कारणही होता है I

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कुलिक कालसर्प योग:-जब द्वितीय राहू और केतुअष्टम भाव में स्थित हो तो ‘कुलिक कालसर्प योग’ का निर्माण होता है I

(1) ये जातक धन और परिवार के प्रति सदैव चिन्तित रहते हैं I
(2) पराए एवं दुष्ट-जन कुदृष्टि से प्रभावित ये जातकजीवन-विकास में समय-समय पर प्रभावित होते हैं.ये समझ नहीं पाते कि कौन इनका मित्र और कौनशत्रु है, फिर भी ये हँसते-हँसते व स्वयंजीते और दूसरों को भी जीनेदेते हैं I इनका पराक्रम ही इन्हे उठाता औरबुद्धिमानी ही प्रगति पर लेजाती है I
(3) इनमें धन संचय की प्रवृति बहुतही कम होती है अर्थात मुक्त-हस्त होते हैं, जिस कारण ये जीवन भरआवश्यक धन संचय से वंचित रहते हैं I
(4) इनके जीवन की अधिकतरपरेशानियाँ इनकी वाणी की वजहसे ही आती हैं, क्योंकि अवसरानुकूलवाणी का उपयोग करने की कला में ये लोगनिष्णात नहीं होते I

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वासुकी कालसर्प योग:- तृतीय भावअर्थात पुरूषार्थ भाव से नवम भाग्य भाव के मध्य अन्यसभी ग्रह आने पर ‘वासुकी कालसर्पयोग’ घटित होता है I

(1) भाई-बहन व परिवारीजनों से निरन्तर कष्टों,अपमान आदि का सामना करना पडता रहता है I
(2) गृहस्थ जीवन विश्रृंखलितरहती है तथा पति-पत्नि में परस्पर कटुता, तनाव,वैचारिक मतभेद, कलह, विरोध तथा कामसुख सेअसंतुष्टि बनी रहती है I
(3) भाग्य कदम-कदम पर इन लोगों के साथ खेल खेलता है.भाग्य में निरन्तर उठा-पटक तथा भाग्योदय में अनेकानेक बाधाएंउत्पन होती रहती हैं I
(4) इन जातकों का धर्म के प्रति रूझान सदैव कम रहता है.जीवन के किसी कालविशेष में मन मेंनास्तिक भाव भी जागृत होने लगते हैं I
(5) नौकरी में बाधाएं, तरक्की मेंरूकावटों के साथ-साथ नौकरी छूटने या सस्पेंड होनेका भय बना रहता है I

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शंखपाल कालसर्प योग:- जन्मकुंडली के चतुर्थ भावमें राहु और दशम में केतु के स्थित होने पर ‘शंखपाल कालसर्प योग’ का निर्माण होता है I

(1) जातक के अपने माता-पिता एवं सगे-सम्बन्धियों से निरन्तरकोई न कोई मतभेद बने रहते हैं I
(2) जीवनपर्यन्त घर से भागे-भागे फिरना,वाहनप्रिय होना और किसी पेशे-व्यवसाय पर न टिककर स्वतन्त्रव्यवसाय की खोज में लगे रहना इनलोगों का स्वभाव बन जाता है I
(3) जीवन के 1/4 भाग से 3/4 भाग तक येअपनी व्यथा अपने सीने में दबाये रहतेहैं. इनके मित्र भी बेहूदे और स्वार्थी होते हैं, जो वक्त-बेवक्तकिसी मदद की अपेक्षा सिर्फ खाने-उडाने को ही मित्रता का पर्याय समझते हैं I
(4) 48 वर्ष की आयु तक जीवन मेंस्थिर आमदनी का अभाव रहता है I परिवार एवंसमाज में मर्यादा बनाये रखने में भी इन्हेकठिनाईयों का सामना करना पडता है I

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पदम कालसर्प योग:- पंचम स्थान से एकादश स्थान तक राहु-केतु के मध्य सभी ग्रह होने पर पदम कालसर्पयोग निर्मित होता है I

(1) जातक को जीवनभर सन्तान पक्षकी ओर से चिन्ता-परेशानी लगी रहती है.प्रथम तो पुत्र संतान होने मेंव्यवधान रहेगा. दूसरे, दैवयोग सेसंतान होने पर भी जीवनभर सन्तान केगलत आचरण, उसके मन की प्रकृति को लेकरचिन्ता लगी रहती है. अर्थातइनकी सन्तान जी-जलानेवाली होती है I
(2)जुआ, सट्टा, शेयर मार्किट इत्यादि अशुभ कार्यों मेंभारी हानि उठानी पडती है I
(3) वृद्धावस्था कष्टमय व्यतीत होगी.यदा-कदा पेट, कुक्षी एवंटाँगों सम्बन्धी रोग-बीमारी का सामना करना पडता रहेगा I

महापदम कालसर्प योग:- जन्मपत्रिका के छठे रोग व शत्रु भावमें राहु और बाहरवें व्यय भाव में केतु सहित अन्य सभी ग्रह इनके मध्य स्थित होने पर महापदमकालसर्प योग उत्पन्न होता है I

* जातक दूसरों की सहायता कर सदैव अपने लिएमानसिक प्रतिद्वंदिता ही बढाते हैं I
* इन्हे जीवन-यापन की कोई विशेषकठिनाई तो नहीं होती किन्तु आसमानछूनेजैसी कल्पना बनी रहती है I
* आसपास के लोग इन जातकों को कलंकित करने पर अवसर ढूँढ-ढूँढ कर लाँछित करने अक प्रयास करते रहते हैं परन्तु जातकनिज बुद्धि कौशल से इन परेशानियों से पार पा जाता है I
* जातक अपने अर्थोपार्जन के साधनों पर असंतुष्ट रहता हुआभी तीव्रतम आकांक्षा लिएउम्मीदों पर जीता है I

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तक्षक कालसर्प योग:- सप्तम भाव में राहू और लग्न में केतुके स्थित होने पर ‘तक्षक कालसर्प योग’ का निर्माण होता है I

(1) जातक धन-परिवार स्वाभिमान आदि के लिएसंघर्षशील रहकर जीवन भरझूझता ही रहता है. कभी-कभी तो जीवन से ऊबकर घर-गृहस्थी को त्याग देने के भी मन मेंविचार जन्म लेने लगते हैं I
(2) सम्पर्क में आने वाले प्रत्येक व्यक्ति से इन्हेजीवन में धोखा ही उठाना पडता है, फिरचाहे वह अपना स्वयंका जीवनसाथी ही क्यों नहो I
(3) दिल की आग को दिल में रखकरजीना एक तरह से इन लोगों का स्वभावही बन जाता है I
(4) विद्यार्थी से लेकरअपनी नौकरी अथवा निजि व्यवसाय मेंशिखरता पाकर भी दैववश कोप का भाजन बनते हैं और शिखरता धरी रह जाती है I

कार्कोटक  कालसर्प योग:- जब केतु द्वितीय व राहुअष्टम अथवा राहु द्वितीय व केतु अष्टम भाव मेंहो तो ‘कर्कोटक कालसर्प योग’ होता है I

(1)जातक जीवन पर्यन्त भाग्यकी ओर से परेशान रहता है. 48 वर्षकी आयु तक विकट संघर्षमय परिस्थितियों का सामना करना पडेगा I वृद्धावस्था की आयु में जाकर भाग्य का साथ मिलेगा.लेकिन ‘का बरखा जब कृषि सुखाने’ I
(2) अथक प्रयास करने पर भी व्यापारजमता नहीं, नौकरी करे तो उसमेंभी स्थायित्व न रहे. बार-बार जगहबदलनी पडे I
(3) पैतृक सम्पति को लेकर भाई-बन्धुओं से लडाई-झगडे,मतभेद की स्थितियाँ निर्मित होंगी I
(4) जीवन में सच्चे मित्रों का अभाव रहेगा.मित्रों की ओर से धोखा एवं हानि का सामना करेगा औरकुमार्गकी ही शिक्षा मिलेगी I
(5) एक बार किसी लम्बी-असाध्य-दुरूह बीमारी के चलते आपरेशन-चीरफाड-शल्यक्रिया करवानी पडेगी I

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शंखचूड  कालसर्प योग:- नवम भाव में राहू औरतृतीय स्थान में केतु के होने पर ‘शंखनाद कालसर्पयोग’ का निर्माण होता है I

(1) जातक को भाग्य और कर्म पक्ष के उत्तम होने परभी जीवन भर कोई न कोई कष्ट उठानेही पडते हैं. इनके गुप्त शत्रु कम न होकरबढते ही जाते हैं I
(2) नाम और व्यवसाय की उत्तरोतर वृद्धि परभी ये लोग स्वयं ही अपने हाथों विनाशकर बैठते हैं I
(3) इनका सहनशील व्यवहार देखकर इनसेमिलनेवाला प्रत्येक व्यक्ति इनसे लाभ उठाता है I
(4) जीवन में की गई स्वयंकी गलतियाँ जीवनभर अन्तर्मनको पीडित किए रखती हैं I

घातक  कालसर्प योग:- यह योग क्रम सेजन्मकुंडली के दसवें भाव में राहु और चौथे केतु होने पर अपने शरीर में सभी ग्रहों को समाये रहता है I

(1) जातक का गृहस्थ जीवन परिवार-जनों सेअसंतुष्ट रहता है. पैतृक सम्पति को लेकर निजिजनों से विवाद पैदा होते हैं I
(2) आजीविका अथवा व्यवसायसम्बन्धी समस्या मुंह बायेखडी रहती हैं I
(3) इस योग के जातक काल के गाल में फंसेही रहते हैं. इन्हे ह्रदय कष्टसाध्य,विलम्बी अथवा किसी आसाध्य राजयोगका भी सामना करना पडता है I
(4) जीवन में लोगों के अहसान और ऋण का भारउत्तरोतर चढता ही जाता है I

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विषधर  कालसर्प योग:- जन्मकुंडली में जब एकादशभाव में राहु को लेकर केतु अन्य भावों सहितसभी ग्रहों को समेटे रहता है तो ‘विषाक्तकालसर्प योग’ का निर्माण होता है I

(1) जातक जीवन के तीन मूलसुखविद्या, धन और पुत्र संतान में से किसी एक को पाकरही संतुष्ट रहने को विवश होता है I
(2) भावावेश और उदारवादिता के कारण जीवन में बारबार क्षति का सामना करना पडता है. I
(3) मधुमेह(डायबिटीज), विषव्रणादि(अल्सर)आदि किसी दीर्घव्यापी रोगसे ग्रसित रहते हैं I
(4) बडे भाई/ताऊ/चाचा के कारण अथवा मनोवांछित लाभकी चिन्ता इन्हे सदैव सतायेरहती है I

शेषनाग कालसर्प योग:- जन्मकुंडली में बाहरवें भावमें राहु व छठे केतु के अन्तर्गत जब अन्यसभी ग्रह होते हैं तो यह ‘शेषनाग कालसर्पयोग’ बनता है I

* जातक किसी भी परिस्थिति के संसर्ग मेंआकर उसमें ढलने को सहज ही प्रस्तुतहो जाता है I
* इनके जीवन के प्रत्येक कार्य अनायास ही बनते हैं. स्वयं की सोच-समझबेकार जाती हैं I
* जीवन के किसी मोड पर इनकी वृति रचनात्मक होने के साथ-साथ विपरीत वातावरण पाकर विकृत हो उठती है I
* 48 वर्ष की अवस्था तक लाभदायक स्थितियाँ किन्तु उसके पश्चात एकदम से पतन का समय आरम्भ हो जाता है I

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कालसर्प दोष / योग  की शांति अनुष्ठान के लिए कुछ विशेष मुहूर्त होते है जैसे की

  1. नागपंचमी ( शुल्क पक्ष और कृष्ण पक्ष दोनों )

  2. अमावस्या एवं पूर्णिमा

  3. ग्रहण के समय

  4. पंचमी तिथि

  5. राहू के नक्षत्र जिस दिन हो

  6. महाशिवरात्रि

  7. प्रत्येक माह की शिवरात्रि

  8. प्रदोष

ये कुछ विशेष मुहूर्त होते है जिन पर कालसर्प दोष की शांति कराइ जाती है I

उज्जैन, महाकाल नगरी में काल सर्प दोष / योग, पितृ दोष आदि की शांति के लिए संपर्क करे I

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महेश कुमार शिवा ganeshavoice.in के मुख्य संपादक हैं। जो सनातन संस्कृति, धर्म, संस्कृति और हिन्दी के अनेक विषयों पर लिखतें हैं। इन्हें ज्योतिष विज्ञान और वेदों से बहुत लगाव है।
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