सभी ग्रह अपनी दशा अन्तर्दशा में तो अपना फल देते ही हैं बल्कि कुछ और भी जीवन में ऐसे मौके आते हैं जब ग्रह अपना पूरा प्रभाव व्यक्ति के जीवन पर डालते हैं। जैसे कि गोचर के अनुसार भी ग्रह अपना फल देते हैं। बिना दशा के भी ग्रह फल देते है।
सूर्य का फल देने का समय
अगर आप बीमार होते हैं उस समय सूर्य का प्रभाव आप पर होता है। सूर्य यदि अच्छा हो तो बीमारी की अवस्था में भी आपका मनोबल बना रहता है इसके विपरीत यदि सूर्य अच्छा न हो तो जरा सा स्वास्थ्य खराब होने के बाद आपको जीवन से निराशा होने लगती है। इस समय सूर्य का पूर्ण प्रभाव आप पर होता है। सूर्य पिता, आत्मा समाज में मान, सम्मान, यश, कीर्ति, प्रसिद्धि, प्रतिष्ठा का करक होता है। कुंडली में सूर्य के अशुभ होने पर पेट, आँख, हृदय का रोग हो सकता है साथ ही सरकारी कार्य में बाधा उत्पन्न होती है। इसके लक्षण यह है कि मुँह में बार-बार बलगम इकट्ठा हो जाता है, सामाजिक हानि, अपयश, मनं का दुखी या असंतुस्ट होना, पिता से विवाद या वैचारिक मतभेद सूर्य के पीड़ित होने के सूचक है।
उपाय : ऐसे में भगवान राम की आराधना करें। आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ करें, सूर्य को आर्घ्य दे, गायत्री मंत्र का जाप करें। ताँबा, गेहूँ एवं गुड का दान करें । प्रत्येक कार्य का प्रारंभ मीठा खाकर करें। ॐ घृणी सूर्याय नमः १०८ बार (१ माला) जाप करें।
चंद्रमा का फल देने का समय
घर में किसी बच्चे के जन्म के समय हम चंद्रमा के प्रभाव में होते हैं। जीवन में संवेदनशील लम्हों में चन्द्र का प्रभाव हमारे जीवन पर पड़ता है। इसके अतिरिक्त जब हम अपने हुनर या कला का प्रदर्शन करते हैं तब चन्द्र हमारे साथ होते हैं।
चन्द्रमा माँ का सूचक है और मन का कारक है। शास्त्र कहता है कि “चंद्रमा मनसो जात:” कुंडली में चंद्र अशुभ होने पर माता को किसी भी प्रकार का कष्ट या स्वास्थ्य को खतरा होता है, दूध देने वाले पशु की मृत्यु हो जाती है। स्मरण शक्ति कमजोर हो जाती है। घर में पानी की कमी आ जाती है या नलकूप, कुएँ आदि सूख जाते हैं मानसिक तनाव, मन में घबराहट, तरह तरह की शंका मनं में आती है और मन में अनिश्चित भय व शंका रहती है और सर्दी बनी रहती है। व्यक्ति के मन में आत्महत्या करने के विचार बार-बार आते रहते हैं।
उपाय : सोमवार का व्रत करना, माता की सेवा करना, शिव की आराधना करना, मोती धारण करना, सोमवार को सफ़ेद वास्तु जैसे दही, चीनी, चावल,सफ़ेद वस्त्र, १ जोड़ा जनेऊ, दक्षिणा के साथ दान करना और ॐ सोम सोमाय नमः का १०८ बार नित्य जाप करना श्रेयस्कर होता है।
मंगल का फल देने का समय
चोट लगने पर, सर्जरी या आपरेशन के समय, संघर्ष करते समय और मेहनत करते वक्त मंगल हमारे साथ होता है। उस वक्त किसी अन्य ग्रह की अपेक्षा मंगल का असर सर्वाधिक आप पर रहता है।
मंगल सेनापति होता है, भाई का भी द्योतक और रक्त का भी करक माना गया है। कुंडली में मंगल के अशुभ होने पर भाई, पटीदारो से विवाद, रक्त सम्बन्धी समस्या, नेत्र रोग, उच्च रक्तचाप, क्रोधित होना, उत्तेजित होना, वात रोग और गठिया हो जाता है। रक्त की कमी या खराबी वाला रोग हो जाता। व्यक्ति क्रोधी स्वभाव का हो जाता है।
उपाय : ताँबा, गेहूँ एवं गुड,लाल कपडा,माचिस का दान करें। तंदूर की मीठी रोटी दान करें । बहते पानी में रेवड़ी व बताशा बहाएँ, मसूर की दाल दान में दें। हनुमत आराधना करना, हनुमान जी को चोला अर्पित करना, हनुमान मंदिर में ध्वजा दान करना, बंदरों को चने खिलाना, हनुमान चालीसा, बजरंग बाण, हनुमानाष्टक, सुंदरकांड का पाठ और ॐ अं अंगारकाय नमः का १०८ बार नित्य जाप करना चाहिए।
बुध का फल देने का समय
बुध व्यापार व स्वास्थ्य का करक माना गया है I बुध वाक् कला का भी द्योतक है I विद्या और बुद्धि का सूचक है। कुंडली में बुध की अशुभता पर दाँत कमजोर हो जाते हैं। सूँघने की शक्ति कम हो जाती है। गुप्त रोग हो सकता है। व्यक्ति वाक् क्षमता भी जाती रहती है। नौकरी और व्यवसाय में धोखा और नुक्सान हो सकता है।
जब बोलकर किसी को प्रभावित करने का समय आता है तब बुध का समय होता है। जब आप चालाकी से अपना काम निकालते हैं तो बुध का बलाबल आपकी सहायता करता है।
उपाय : भगवान गणेश की आराधना करें, गौ सेवा करें, अपने भोजन में से एक हिस्सा गाय को, एक हिस्सा कुत्तों को और एक हिस्सा कौवे को दें, या अपने हाथ से गाय को हरा चारा, हरा साग खिलाये। किन्नरों को हरी साडी, सुहाग सामग्री दान देना भी बहुत चमत्कारी है। ॐ बु बुधाय नमः का नित्य जाप करना श्रेयस्कर होता है गणेश अथर्वशीर्ष का पाठ करे। पन्ना धारण करे या हरे वस्त्र धारण करे यदि संभव न हो तो हरा रुमाल साथ रखे।
गुरु का फल देने का समय
जब हम शिक्षा ग्रहण करते है या फिर जब हम शिक्षा देते हैं उस समय गुरु का प्रभाव हमारे जीवन पर होता है। किसी को आशीर्वाद देते समय या किसी को बददुआ देने के समय बृहस्पति ग्रह की कृपा हम पर होती है। इसके अतिरिक्त पुत्र के जन्म के समय या पुत्र के वियोग के समय भी बृहस्पति का पूरा प्रभाव हमारे जीवन पर होता है।
परिवार में बिना बात तनाव, कलह – क्लेश का माहोल होता है। सोना खो जाता या चोरी हो जाता है। आर्थिक नुक्सान या धन का अचानक व्यय, खर्च सम्हलता नहीं, शिक्षा में बाधा आती है। अपयश झेलना पड़ता है। वाणी पर सयम नहीं रहता है।
उपाय : माथे या नाभी पर केसर का तिलक लगाएँ । कलाई में पीला रेशमी धागा बांधे। संभव हो तो पुखराज धारण करे अन्यथा पीले वस्त्र या हल्दी की कड़ी गांठ साथ रखे। दान में हल्दी, दाल, पीतल का पत्र, कोई धार्मिक पुस्तक, १ जोड़ा जनेऊ, पीले वस्त्र, केला, केसर,पीले मिष्ठान , दक्षिणा आदि दे। विष्णु आराधना करें, ॐ ब्रह्म वृहस्पतये नमः का १०८ बार नित्य जाप करना श्रेयस्कर होता है।
शुक्र का फल देने का समय
मनोरंजन के समय शुक्र का प्रभाव होता है। विवाह, वर्षगांठ, मांगलिक उत्सव और सम्भोग के समय शुक्र के फल को हम भोग रहे होते हैं। आनन्द का समय हो या नृत्य का, हर समय शुक्र हमारे साथ होते हैं। यही एकमात्र ऐसा ग्रह है जिसके निर्बल होने पर जीवन एक बोझ के समान लगता है। जीवन से आनन्द ख़त्म हो जाए या जीना मात्र एक मजबूरी बन कर रह जाए तो समझ ले कि शुक्र का बुरा प्रभाव आप पर है। किसी व्यक्ति के कुंडली मे शुक्र ख़राब स्थिति में होने पर अत्याधिक भोगवृत्ति, परस्त्री संबध, व्यभिचार, शील भ्रष्टता, स्त्री दोष, स्त्री के प्रति घृणा, आदि रूप से परिणाम करता है।
शुक्र किशोरावस्था का सूचक है, मौज मस्ती,घूमना फिरना, दोस्त मित्र इसके प्रमुख लक्षण है। कुंडली में शुक्र के अशुभ प्रभाव में होने पर मनं में चंचलता रहती है, एकाग्रता नहीं हो पाती। खान पान में अरुचि, भोग विलास में रूचि और धन का नाश होता है।
उपाय : माँ लक्ष्मी की सेवा आराधना करें, श्री सूक्त का पाठ करे। खोये के मिष्ठान व मिश्री का भोग लगाये। स्वयं के भोजन में से गाय को प्रतिदिन कुछ हिस्सा अवश्य दें। कन्या भोजन कराये, ज्वार दान करें। गरीब बच्चों व विद्यार्थियों में अध्यन सामग्री का वितरण करें। नि:सहाय, निराश्रय के पालन-पोषण का जिम्मा ले सकते हैं। अन्न का दान करें तथा ॐ शुं शुक्राय नमः का १०८ बार नित्य जाप करना भी लाभकारी सिद्ध होता है।
शनि का फल देने का समय
जिस समय हम दुःख की अवस्था में होते हैं तब शनि का समय समझे। शनि के काल की अवधि लम्बी होती है। दुःख या शोक के समय, सेवा करते वक्त, कारावास में या जेल में और बुढापे में शनि का प्रभाव सर्वाधिक होता है।
शनि की गति धीमी है। इसके दूषित होने पर अच्छे से अच्छे काम में गतिहीनता आ जाती है। कुंडली में शनि के अशुभ प्रभाव में होने पर मकान या मकान का हिस्सा गिर जाता या क्षतिग्रस्त हो जाता है। अंगों के बाल झड़ जाते हैं। शरीर में विशेषकर निचले हिस्से में ( कमर से नीचे ) हड्डी या स्नायुतंत्र से सम्बंधित रोग लग जाते है। वाहन से हानि या क्षति होती है। काले धन या संपत्ति का नाश हो जाता है। अचानक आग लग सकती है या दुर्घटना हो सकती है।
उपाय : हनुमत आराधना करना, हनुमान जी को चोला अर्पित करना, हनुमान मंदिर में ध्वजा दान करना, बंदरों को चने खिलाना, हनुमान चालीसा, बजरंग बाण, हनुमानाष्टक, सुंदरकांड का पाठ और ॐ हन हनुमते नमः का १०८ बार नित्य जाप करना श्रेयस्कर होता है। नाव की कील या काले घोड़े की नाल धारण करे। यदि कुंडली में शनि लग्न में हो तो भिखारी को ताँबे का सिक्का या बर्तन कभी न दें यदि देंगे तो पुत्र को कष्ट होगा। यदि शनि आयु भाव में स्थित हो तो धर्मशाला आदि न बनवाएँ। कौवे को प्रतिदिन रोटी खिलाएँ। तेल में अपना मुख देख वह तेल दान कर दें (छाया दान करे )। लोहा, काली उड़द, कोयला, तिल, जौं, काले वस्त्र, चमड़ा, काला सरसों आदि दान दें।
राहू का फल देने का समय
मानसिक तनाव, आर्थिक नुकसान, स्वयं को लेकर ग़लतफहमी, आपसी तालमेल में कमी, बात बात पर आपा खोना, वाणी का कठोर होना व अपशब्द बोलना, कुंडली में राहु के अशुभ होने पर हाथ के नाखून अपने आप टूटने लगते हैं । वाहन दुर्घटना, उदर कष्ट, मस्तिस्क में पीड़ा आथवा दर्द रहना, भोजन में बाल दिखना, अपयश की प्राप्ति, सम्बन्ध ख़राब होना, दिमागी संतुलन ठीक नहीं रहता है, शत्रुओं से मुश्किलें बढ़ने की संभावना रहती है।
उपाय : गोमेद धारण करें। दुर्गा, शिव व हनुमान की आराधना करें। तिल, जौं किसी हनुमान मंदिर में या किसी यज्ञ स्थान पर दान करें। जौं या अनाज को दूध में धोकर बहते पानी में बहाएँ, कोयले को पानी में बहाएँ, मूली दान में देवें, जमादार को शराब, माँस दान में दें। सिर में चोटी बाँधकर रखें। सोते समय सर के पास किसी पत्र में जल भर कर रखे और सुबह किसी पेड़ में दाल दे, इसके साथ हनुमान चालीसा, बजरंग बाण, हनुमानाष्टक, हनुमान बाहुक, सुंदरकांड का पाठ और ॐ रा राहवे नमः का १०८ बार नित्य जाप करना लाभकारी होता है।
केतू का फल देने का समय
कुंडली में केतु के अशुभ प्रभाव में होने पर चर्म रोग, मानसिक तनाव, आर्थिक नुकसान, स्वयं को लेकर ग़लतफहमी, आपसी तालमेल में कमी, बात बात पर आपा खोना, वाणी का कठोर होना अपशब्द बोलना, जोड़ों का रोग या मूत्र एवं किडनी संबंधी रोग हो जाता है। संतान को पीड़ा होती है। वाहन दुर्घटना, उदर, मस्तिस्क में पीड़ा आथवा दर्द रहना, अपयश की प्राप्ति, सम्बन्ध ख़राब होना, दिमागी संतुलन ठीक नहीं रहता है, शत्रुओं से मुश्किलें बढ़ने की संभावना रहती है।
उपाय : दुर्गा, शिव व हनुमान की आराधना करें, तिल, जौ किसी हनुमान मंदिर में या किसी यज्ञ स्थान पर दान करे। सोते समय सर के पास किसी पत्र में जल भर कर रखे और सुबह किसी पेड़ में डाल दे। ॐ कें केतवे नमः का नित्य जाप करना लाभकारी होता है, अपने खाने में से कुत्ते, कौव्वे को हिस्सा दें, पक्षियों को बाजरा डाले, चीटियों के लिए भोजन की व्यस्था करना अति महत्व्यपूर्ण है।
नोट— इस आर्टिकल में दी गई जानकारी ज्योतिषीय जानकारी है। किसी भी उपाय करने से पहले किसी ज्योतिषी विद्वान की सलाह अवश्य लें।