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क्या होता है राहू काल Rahukal एक डर या सत्य

राहू काल …Rahukal एक ऐसा नाम जिसको सुनते ही मन में सैकड़ो तरह के विचार पैदा हो जाते है  दिलो दिमाग पर एक अजीब सा डर हावी हो जाता है ….

क्या होता है राहुकाल

समुद्र मंथन के समय जो अमृत निकला था उसे पीने के लिए दैत्यों का सेनापति राहू देवताओ कि पंक्ति में बैठ गया और जैसे ही उसने अमृत पान किया वैसे ही सूर्य और चन्द्र के पहचाने जाने के कारण भगवान् विष्णु जी ने सुदर्शन चक्र से राहू गर्दन काट दी ।  इसलिए राहू की गर्दन के काटने के समय को राहू काल कहा जाता है जो अशुभ माना जाता है। इस काल में आरम्भ किये गए कार्य-व्यापार में काफी दिक्कतों के बाद कामयाबी मिलती है, इसलिए इस काल में कोई भी नया कार्य आरम्भ करने से बचना चाहिए ।

 

क्यों राहुकाल में कोई शुभकार्य नहीं करते ?

जैसा की नाम से ही पता चलता है राहु काल मतलब राहू का समय । राहू को शुभ ग्रह नहीं माना जाता है इसको हमेशा नकारात्मक ग्रह माना जाता है । राहु-काल का मतलब है की  यह समय अच्छा नहीं है । राहू काल में कार्यो के पूर्ण  होने की संभावना कम होती है ।  इस समय पर जो कार्य  प्रारम्भ किये जाते है उनके सफल होने  के लिये अत्यधिक प्रयास करने पडते हैं, उन कार्यों मे कुछ न कुछ व्यवधान लगा ही रहता है राहु काल में विवाह , शुभ संस्कार, यात्रा का प्रारम्भ करना निषेध हैं । राहुकाल के दौरान अग्नि, यात्रा, किसी वस्तु का क्रय विक्रय, लिखा पढी व बहीखातों का काम नही करना चाहिये । मान्यता अनुसार किसी भी पवित्र, शुभ या अच्छे कार्य को इस समय आरंभ नहीं करना चाहिए ।  राहुकाल प्रायः प्रारंभ होने से दो घंटे तक रहता है । पौराणिक कथाओं और वैदिक शास्त्रों के अनुसार इस समय अवधि में शुभ कार्य आरंभ करने से बचना चाहिए ।

 

राहूकाल की गणना

राहु का सिर कटने की घटना सायंकाल की है, जिसे पूरे दिन के घंटा, मिनट का आठवां भाग माना गया । कालगणना के अनुसार किसी भी जगह के सूर्योदय के समय से सप्ताह के पहले दिन सोमवार को दिनमान के आठवें भाग में से दूसरा भाग, शनिवार को दिनमान के आठवें भाग में से तीसरा भाग, शुक्रवार को आठवें भाग में से चौथा भाग, बुधवार को पांचवां भाग, गुरुवार को छठा भाग, मंगलवार को सातवां तथा रविवार को दिनमान का आठवां भाग राहुकाल होता है । किसी बड़े तथा शुभ कार्य के आरम्भ के समय उस दिन के दिनमान का पूरा मान घंटा, मिनट में निकालें, उसे आठ बराबर भागों में बांट कर स्थानीय सूर्योदय में जोड़ दें, आपको शुद्ध राहुकाल ज्ञात हो जाएगा। जो भी दिन होगा, उस भाग को उस दिन का राहुकाल मानें ।

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राहु काल को दक्षिण भारत में विशेष रूप से देखा जाता है ।  यह सोमवार से लेकर रविवार तक प्रतिदिन निश्चित समय पर लगभग डेढ़ घण्टे तक रहता है ।  इसे अशुभ समय के रुप मे देखा जाता है । इसी कारण राहु काल की अवधि में शुभ कर्मो को  यथा संभव टालने की सलाह दी जाती है ।

इस सूर्य के उदय के समय व अस्त के समय के काल को निश्चित आठ भागों में बांटने से ज्ञात किया जाता है । सप्ताह के प्रथम दिवस अर्थात सोमवार के प्रथम भाग में कोई राहु काल नहीं होता है । यह सोमवार को दूसरे भाग में, शनिवार को तीसरे भाग, शुक्रवा को चौथे भाग, बुधवार को पांचवे भाग, गुरुवार को छठे भाग, मंगलवार को सातवे तथा रविवार को आठवे भाग में होता है । यह प्रत्येक सप्ताह के लिये निश्चित रहता है ।

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 यह इस प्रकार है:-

सोमवार  : सुबह 7:30 बजे से लेकर प्रात: 9.00 बजे तक

मंगलवार : दोपहर 3:00 बजे से लेकर दोपहर बाद 04:30 बजे तक.

बुधवार   : राहु काल दोपहर 12:00 बजे से लेकर 01:30 बजे दोपहर तक

गुरुवार   : राहु काल दोपहर 01:30 बजे से लेकर 03:00 बजे दोपहर तक.

शुक्रवार   : राहु काल प्रात: 10:30 से 12:00 बजे तक.

शनिवार  : राहु काल प्रात: 09:00 से 10:30 बजे तक.

रविवार   : राहु काल सायं काल में 04:30 बजे से 06:00 बजे तक

राहु काल के समय में किसी नये काम को शुरु नहीं किया जाता है परन्तु  जो काम इस समय से पहले शुरु हो चुका है उसे राहु-काल के समय में बीच में नहीं छोडा जाता है ।

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महेश के. शिवा ganeshavoice.in के मुख्य संपादक हैं। जो सनातन संस्कृति, धर्म, संस्कृति और हिन्दी के अनेक विषयों पर लिखतें हैं। इन्हें ज्योतिष विज्ञान और वेदों से बहुत लगाव है।
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