GURU बृहस्पति के संबंध में ऋग्वेद में कई ऋचाएं दी हुई है। ब्रह्म शब्द से ही ब्रह्मपति अथवा बृहस्पति की व्युत्पत्ति हुई है। ब्रह्म शब्द का अर्थ सायणचार्य ने बताया है कि “जिसका निरंतर विस्तार होता हो” उसे ब्रह्म कहते हैं । ब्रह्मांड आदि काल से विस्तारित (expand) हो रहा है, इसलिये ब्रह्म है । बृहस का स्वयं अर्थ बृहत अथवा विस्तार होता है, इसलिये बृहस्पति ग्रह को विस्तार (expansion) करने वाला माना जाता है । अतः बृहस्पति का मूल कारक विस्तार है ।
श्रीमद् भगवद् गीता (हिन्दी अनुवाद सहित)
बृह्मांड की स्तुति करने के कारण बृहस्पति को वाचस्पति भी कहते हैं । याचक, वाचक और बृह्मांड सभी बृहस्पति के कारक बन जाते हैं । बृहस्पति मूलतः ब्रह्मांड की स्तुति के लिए प्रयुक्त कर्मकांड और उसके ज्ञान से जुड़ा ग्रह है । इसलिये वेद, पुराण, स्तुतियाँ, कर्मकांड सभी बृहस्पति के प्रभाव में आते है । दर्शन शास्त्र और वैदिक कर्मकांड दो प्रथक विचार धारा हैं । दर्शन शास्त्र शनि का कारक है तो कर्मकांड बृहस्पति का ।
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बृहस्पति का नवम व द्वादश भाव अर्थात वेद,पुराण कर्मकांड और अंत मे मृतयु । प्राचीन परंपरा में कर्मकांड, ज्ञान का अभिप्राय है, इसलिये नवम भाव बृहस्पति का है । ज्ञान से पूर्ण होने उपरान्त मोक्ष अर्थात मृतयु,द्वादश भाव भी बृहस्पति का है । बृहस्पति को जीव भी कहते हैं अर्थात जीवन ।
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जब सृस्टि की प्रक्रिया प्रारंभ हुई तत्समय सृस्टि के विकास के लिए प्रकृति अर्थात स्त्री तत्व की आवश्यकता महसूस हुई । ब्रह्म अर्थात बृहस्पति और स्त्री तत्व के मिलन से विकास आगे बढ़ा । इसलिये बृहस्पति के नाम के साथ बहुत स्त्रियों के नाम जुड़े । कभी तारा तो कभी रोहणी तो कभी अनसुइया । बृहस्पति की स्त्री लोलुपता के कारण बृहस्पति को व्यभिचार का भी ग्रह माना जाने लगा और भ्रष्ट पंडित की उपाधि से अलंकृत हुया । बृहस्पति का सप्तम, अष्ठम भाव से संबंध, उच्च का बृहस्पति आदि अनेक स्त्री संबंध को बताता है । विश्व की अन्य संस्कृतियों में मंगल को बृहस्पति का पुत्र माना जाता है।
श्रीसुंदरकांड (हिंदी भावार्थ सहित)
मंगल ग्रह एक ऐसा ग्रह है जो युद्ध का देवता माना जाता है । मंगल सदैव युद्ध मे विजयी नही होता, पराजित भी होता है, युद्ध नीति को बारबार बदलता भी है ।
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बृहस्पति और मंगल जब साथ साथ बैठते है, तो मंगल की आक्रमक प्रवर्ति और बृहस्पति का ज्ञान, जातक प्रचारक बन जाता है । मनन के ध्यान की जगह, वाणी से बोलता है, अर्थात जातक उच्चारण से ध्यान प्राप्त करता है । कर्मकांड का मठ दीश, प्रवक्ता, शस्त्र धारण करने वाला, वाणी के ओज से प्रभावित करने वाला होता है । स्त्री से वैराग्य कराने वाला होता है ।
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