sawan : सनातन धर्म में भगवान भोलेनाथ से जुड़े कई पर्व मनाए जाते हैं और इनमें श्रावण मास यानी सावन का अपना अलग ही विशेष महत्व है। भगवान शिव को यह मास अत्यधिक प्रिय है व इस माह में भगवान शिव की पूजा करने से अच्छा फल प्राप्त होता है।
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first monday of sawan : हम हमेशा से भगवान शिव की पूजा अर्चना के बारे में ही सुनते आ रहे हैं कि शिव पूजन के बारे में कहा जाता है कि शिव पूजन में विधि विधान से मंत्रों का जाप करना अनिवार्य होता है, यदि आप विधि विधान से मंत्रों का जाप करते हैं तभी आपको इसका फल मिलता है। लेकिन ऐसा बिल्कुल भी नहीं है।
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भगवान भोलेनाथ सिर्फ यह देखते हैं कि जो व्यक्ति उनकी पूजा कर रहा है उसका मन कैसा है, उसकी श्रद्धा भाव कैसा है, भगवान शिव या कोई भी भगवान यह नहीं देखते हैं कि किसी व्यक्ति ने उनके मंत्र का कितनी बार जाप किया या उनकी पूजा पर कितना खर्चा किया। अगर हम सही शब्दों में जाने तो भगवान भोलेनाथ यह देखते हैं कि इंसान की सोचने की शक्ति कैसी है और वह कैसी भावना रखता है अगर उसकी भावना अच्छी होगी तो भगवान भोलेनाथ अवश्य प्रसन्न होंगे और उसकी सारी मनोकामनाएं पूरी करेंगे।
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भगवान के भक्त सच्चे मन से बिना मंत्र पढ़े सभी पूजन सामग्री अर्पित कर सकते हैं। किसी भी भगवान का कोई भी भक्त उन्हें कोई भी पूजन सामग्री अर्पित कर सकता है, लेकिन उसके लिए उसमें सच्ची श्रद्धा और विश्वास होना चाहिए।
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अगर हम एक फूल भी भगवान को अर्पित करते हैं सच्ची श्रद्धा, भक्ति से और उससे सब का उपकार हो तो पूरी सृष्टि में उसे बदलने से कोई नहीं रोक सकता और सारे पूज्य देवी- देवता व भोलेनाथ हमारे सभी कार्य सिद्ध करने के लिए मदद करते हैं और हमारा साथ देते हैं। हम जब खुद की रक्षा करेंगे तो भगवान भोलेनाथ हमारी स्वयं रक्षा करेंगे। भगवान भोलेनाथ ने स्वयं कहा है कि…
“न में प्रियष्चतुर्वेदी मद्भभक्तः ष्वपचोऽपि यः।
तस्मै देयं ततो ग्राह्यं स च पूज्यो यथा ह्यहम्।
पत्रं पुष्पं फलं तोयं यो मे भक्त्या प्रयच्छति।
तस्याहं न प्रणस्यामि स च मे न प्रणस्यति। “
अर्थात:
इस मंत्र का अर्थ है, जो भक्त सच्चे मन, श्रद्धा और भक्ति भाव से बिना किसी वैदिक मंत्र का जाप किए भगवान शिव को सिर्फ एक पुष्प अथवा जल समर्पित करता है भगवान शिव उस व्यक्ति से भी उतना ही प्रसन्न होते हैं जितना कि किसी वैदिक मंत्रों के उच्चारण करने वाले व्यक्ति से खुश होते हैं। भगवान शिव कभी उस व्यक्ति की नजरों से दूर नहीं होते और न ही वह व्यक्ति भगवान शिव की नजरों से कभी दूर होता है। भगवान शिव एवं सभी देवी देवताओं के लिए किसी भी मंत्र के जाप से ज्यादा सच्चे मन से की जाने वाली पूजा ज्यादा मायने रखती है।
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पूजा -अर्चना की विधि:
1. भगवान शिव का दूध, दही, शहद और मिश्री मिलाकर जलाभिषेक करें।
2. भगवान शिव को पांच प्रकार के फल चढ़ाएं।
3. भगवान शिव को धतूरा अर्पित करें व चंदन से तिलक करें।
4. भगवान शिव को बेलपत्र अर्पित करें और उस बेलपत्र पर ओम नमः शिवाय या राम लिखकर अर्पित करें।
5. भगवान शिव चालीसा का पाठ करें और इसके बाद फिर आरती करें।
6. आरती करने के बाद अपने दोनों कान पकड़ कर भगवान शिव से प्रार्थना करें कि हे देवाधिदेव महादेव, मैंने जो मंत्रहीन, भक्तिहीन आपका पूजन किया है, वह सब आपकी दया से पूर्ण हो। मुझसे जो भी कम या ज्यादा हो गया हो, उसे स्वीकार करें और मेरे द्वारा हुई भूल चूक तथा समस्त अपराधों को क्षमा करें, क्षमा करें, क्षमा करें।
संकलन
श्री ज्योतिष सेवा संस्थान भीलवाड़ा (राजस्थान)
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