Rnaharta ganapati stotr : विपरीत परिस्थितियां आने पर कई बार अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए इंसान को कर्ज लेना पड़ जाता है। लेकिन कर्ज को लेकर आप तत्काल में समस्या का निवारण तो कर सकते हैं, लेकिन बाद में ये कर्ज ही आपके लिए समस्या बन जाता है।
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समय के साथ ये कर्ज बढ़ता जाता है और कई बार व्यक्ति चाह कर भी इसे आसानी से चुका नहीं पाता। अगर आपके साथ भी ऐसी कोई समस्या है तो आने वाले गणेश उत्सव में गणपति की उपासन कर उनके समक्ष ‘ऋणहर्ता गणपति स्तोत्र’ का पाठ करें। गणपति उत्सव हर साल गणेश चतुर्थी के दिन से शुरू होकर अनंत चतुर्दशी तक चलता है।
इस दौरान गणपति के भक्त उन्हें घर पर बैठाते हैं और उनका विशेष रूप से पूजन करते है। उनका पसंदीदा भोग अर्पित करते हैं। मान्यता है कि गणपति महोत्सव के दौरान गणेश जी का सच्चे मन से पूजन करने से सभी तरह के दुखों का अंत होता है और परिवार में सुख समृद्धि आती है।
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इस साल गणेश महोत्सव 10 सितंबर 2021 शुक्रवार से शुरू होकर 19 सितंबर 2021 रविवार तक चलेगा। इस दौरान आप गणपति को अपने घर पर लाएं या आसपास में जहां भी गणपति बैठाए गए हों, वहां जाकर सुबह और शाम गणपति का पूजन करें और ऋणहर्ता गणपति स्तोत्र का पाठ करें। साथ ही उनसे ऋणमुक्ति की प्रार्थना करें। सच्चे मन से की गई प्रार्थना को गणेश भगवान निश्चित तौर पर स्वीकार करेंगे और आपको ऋण से मुक्ति दिलाएंगे।
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ये है ऋणहर्ता गणपति स्तोत्र
ध्यान : ॐ सिन्दूर-वर्णं द्वि-भुजं गणेशं लम्बोदरं पद्म-दले निविष्टम्
ब्रह्मादि-देवैः परि-सेव्यमानं सिद्धैर्युतं तं प्रणामि देवम्
मूल-पाठ
सृष्ट्यादौ ब्रह्मणा सम्यक् पूजित: फल-सिद्धए,
सदैव पार्वती-पुत्र: ऋण-नाशं करोतु मे।
त्रिपुरस्य वधात् पूर्वं शम्भुना सम्यगर्चित:,
सदैव पार्वती-पुत्र: ऋण-नाशं करोतु मे।
हिरण्य-कश्यप्वादीनां वधार्थे विष्णुनार्चित:,
सदैव पार्वती-पुत्र: ऋण-नाशं करोतु मे।
महिषस्य वधे देव्या गण-नाथ: प्रपुजित:,
सदैव पार्वती-पुत्र: ऋण-नाशं करोतु मे।
तारकस्य वधात् पूर्वं कुमारेण प्रपूजित:,
सदैव पार्वती-पुत्र: ऋण-नाशं करोतु मे।
भास्करेण गणेशो हि पूजितश्छवि-सिद्धए,
सदैव पार्वती-पुत्र: ऋण-नाशं करोतु मे।
शशिना कान्ति-वृद्धयर्थं पूजितो गण-नायक:,
सदैव पार्वती-पुत्र: ऋण-नाशं करोतु मे।
पालनाय च तपसां विश्वामित्रेण पूजित:,
सदैव पार्वती-पुत्र: ऋण-नाशं करोतु मे।
इदं त्वृण-हर-स्तोत्रं तीव्र-दारिद्र्य-नाशनं,
एक-वारं पठेन्नित्यं वर्षमेकं सामहित:,
दारिद्रयं दारुणं त्यक्त्वा कुबेर-समतां व्रजेत्।
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