NAKSHATRA : ज्योतिष का सही विश्लेषण नक्षत्रों के आधार पर किया जाता है. अलग-अगल नक्षत्र के स्वभाव भी अलग होते हैं। साथ ही इसके फल भी सबके लिए अलग-अलग होते हैं। ज्योतिष के मुताबिक कुछ नक्षत्र कोमल होते हैं, जबकि कुछ नक्षत्र का उग्र या कठोर होते हैं। ज्योतिष में मूल और गंडमूल नक्षत्र को बेहद खास माना गया है। जिसका असर हर इंसान पर पड़ता है। इसके अलावा सेहत पर भी मूल नक्षत्र का खास असर होता है। जानते हैं कि मूल नक्षत्र क्या होता है और यह किस किस प्रकार प्रभावित करता है।
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क्यों नहीं देखना चाहिए नवजात का मुंह
ज्योतिष के मुताबिक आश्लेषा, मूल और ज्येष्ठा मूल नक्षत्र हैं। इसके सहायक अश्विनी, मघा और रेवती हैं। ऐसे में मूल नक्षत्र 6 हुए। जब किसी बच्चे का जन्म इस नक्षत्र में होता है तो उसकी सेहत बेहद संवेदनशील रहती है। इसके अलावा मान्यता ये भी है कि जब तक इस मूल नक्षत्र की न करा ली जाए, तब तक पिता को भी नवजात का मुंह नहीं देखना चाहिए।
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जन्म से 8 साल के बीच करना चाहिए उपाय
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार बच्चे के जन्म के 27 दिन बाद फिर मूल नक्षत्र के आने पर इसके दोष की शांति करवा लेनी चाहिए। साथ ही नवजात के आठ साल को होने तक माता-पिता को ‘ॐ नमः शिवाय’ का जाप करना चाहिए। यदि नवजात की उम्र 8 साल से अधिक हो जाए तो इसकी शांति की जरुरत नहीं होती। ऐसा इसलिए कि आमतौर पर अधिक संकट जन्म से 8 साल तक ही रहता है। मूल नक्षत्र दोष के कारण बच्चे का सेहत कमजोर रहती है। ऐसे में नवजात की मां को पूर्णिमा का व्रत रखना चाहिए।
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मूल नक्षत्र का सेहत पर असर
मूल नक्षत्र का असर बच्चे की सेहत पर पड़ता है। ऐसे में यदि बच्चे की राशि मेष और नक्षत्र अश्विनी है तो हनुमान जी की उपासना करवानी चाहिए। वहीं अगर राशि सिंह और नक्षत्र मघा है तो बच्चे से सूर्य को जल अर्पित करवाना चाहिए। इसके अलावा यदि बच्चे की राशि धनु और नक्षत्र मूल हो तो ऐसे में गुरु और गायत्री उपासना लाभकारी होती है। अगर बच्चे की राशी कर्क और नक्षत्र आश्लेषा है तो शिव जी की उपासना सबसे अच्छी होती है। वहीं नवजात की राशि वृश्चिक और नक्षत्र ज्येष्ठा हो तो हनुमान जी की पूजा करनी चाहिए। मीन राशि और रेवती नक्षत्र होने पर गणेश जी की उपासना लाभकारी होता है।
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