dharm darshan : डोंगरगढ़ के (dharm darshan) बम्लेश्वरी माता मंदिर से जुड़ी कई मान्यताएं और परंपराएं हैं जो इसे (dharm darshan) खास बनाती हैं। ये मंदिर लगभग 2 हजार फीट की ऊंचाई पर एक पहाड़ पर स्थित है। इसके चारों और जंगल और हरियाली का वातावरण है, जो इस मंदिर को रहस्यमयी बनाता है। कहा जाता है कि माता बम्लेश्वरी 10 महाविद्याओं में से एक बगलामुखी देवी का ही स्वरूप हैं। इस मंदिर में साल भर भक्तों की भीड़ लगी रहती है। दूर-दूर से भक्त यहां शीश झुकाने आते हैं। मंदिर तक जाने के लिए 1 हजार से अधिक सीढ़ियां चढ़नी पढ़ती हैं जो लोग सीढ़िया नहीं चढ़ पाते, वे रोप वे की मदद से मंदिर तक पहुंच सकते हैं।
dharm darshan : इस मंदिर से जुड़ी अनोखी प्रेम कहानी
मान्यताओं के अनुसार, डोंगरगढ़ को कभी कामाख्या नगरी के नाम से जाना जाता था। यहां के राजा मदनसेन थे। मदनसेन के पुत्र का नाम कामसेन था। ऐसा कहा जाता है कि इस राज्य में कामकंदला नाम की एक नर्तकी और संगीतकार माधवानल भी रहते थे। ये दोनों राजा के दरबार में अपनी कला का प्रदर्शन करने आते थे।
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एक बार राजा कामसेन ने प्रसन्न होकर माधवानल को अपने गले का हार दे दिया। माधवानल ने वो हार कामकंदला को पहना दिया। ये देख राजा कामसेन क्रोधित हो गए और उन्होंने माधवानल को देश निकाला दे दिया। कामकंदला और माधवानल एक-दूसरे प्रेम करते थे।
एक बार माधवानल अपनी कला की प्रस्तुति देने उज्जैन के राजा विक्रमादित्य के दरबार में पहुंचे। वहां माधवानल ने राजा विक्रमादित्या से कामकंदला को कामसेन से मुक्त कराने की प्रार्थना की। वचनबद्ध होने से राजा विक्रमादित्य ने कामाख्या नगरी पर आक्रमण कर दिया। इस युद्ध में राजा विक्रमादित्य की जीत हुई।
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लेकिन किसी ने कामकंदला को गलत जानकारी दी कि युद्ध मां माधवानल मारा गया। शोक में आकर उसने तालाब में कूदकर अपनी जान दे दी। व्याकुल होकर माधवानल ने भी प्राण त्याग दिए। ये बस देखकर राजा विक्रमादित्य को बहुत दुख हुआ और उन्होंने मां बगलामुखी की आराधना की।
माता प्रसन्न होकर प्रकट हुईं तो राजा विक्रमादित्य ने माधवानल और कामकंदला को जीवनदान देने की प्रार्थना की। माता ने ऐसा ही किया और उसी स्थान पर स्थापित हो गई। वही माता बगलामुखी आज बम्लेश्वरी देवी के रूप में पूजी जाती हैं।
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