haridwar final 2 1 1 ganeshavoice.in Dharm darshan हरिद्वार को आखिर क्यों कहते हैं गंगाद्वार, जानें इसका धार्मिक महत्व
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Dharm darshan हरिद्वार को आखिर क्यों कहते हैं गंगाद्वार, जानें इसका धार्मिक महत्व

Dharm darshan : सनातन परपंरा में जिन सात प्राचीन पुरियों का जिक्र आता है, उनमें हरिद्वार का बहुत महत्व है। हरिद्वार दो शब्दों हरि और द्वार से मिलकर बना है. जिसमें हरि का तात्पर्य भगवान विष्णु से है। चूंकि यहीं से होकर बद्रीनाथ (विष्णुतीर्थ) को रास्ता जाता है, इसी लिए इसे ‘हरिद्वार’ कहते हैं। वहीं शिव भक्त इसे ‘हरद्वार’ कहते हैं, क्योंकि यहीं से भगवान केदारनाथ यानि (शिवतीर्थ) का भी रास्ता जाता है।

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गंगा नदी के किनारे बसी इस पावन नगरी में देश-दुनिया से प्रतिदिन हजारों लोग मोक्ष की कामना लिए हरिद्वार पहुंचते हैं। चूंकि गंगा जल को हिंदू धर्म में सबसे पवित्र जल माना जाता है, ऐसे में हर कोई जीवन में एक बार हरिद्वार जरूर जाना चाहता है। पौराणिक मान्यता के अनुसार हरिद्वार में गंगा जी में स्नान मात्र से ही व्यक्ति को जन्म-मरण के चक्र से मुक्ति मिल जाती है। हरिद्वार को गंगा द्वार भी कहते हैं क्योंकि मां गंगा यहीं से मैदानी भागों में प्रवेश करती हैं।

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मान्यता है कि हरि की इसी पावन नगरी में कभी अमृत की बूंदें गिरी थी, तब से यह क्षेत्र और भी ज्यादा पवित्र और पुण्यदायी हो गया। पृथ्वी पर लगने वाले चार प्रमुख कुंभ में से एक का आयोजन हरिद्वार में ही होता है।

हर की पौड़ी हरिद्वार का प्रमुख स्थान है। जिसके बारे में मान्यता है कि भगवान विष्णु जब पृथ्वी पर आए तो इसी स्थान पर आए थे। यही कारण है कि इसे हरि की ‘हरि की पैड़ी’ कहा जाता है। जिसे आम बोलचाल की भाषा में ‘हर की पौड़ी’ कहा जाने लगा. मान्यता है कि समुद्रमंथन के बाद जब देवताओं और राक्षसों के बीच अमृत घट को लेकर छीना-झपटी हो रही थी तो उसमें कुछ बूंदें हरिद्वार में ‘हर की पौड़ी’ पर गिर पड़ी थीं।

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हरिद्वार में माता चंडी का मंदिर शिवालिक पर्वत श्रृंखला के नीलपर्वत के शिखर पर स्थित है। मान्यता है कि चण्डी माता ने शुम्भ निशुम्भ के सेनानायक चण्ड-मुण्ड का इसी स्थान पर वध किया था। जिसके कारण लोग यहां पर उन्हें चंडी देवी के नाम से पूजने लगे।

हर की पौड़ी के ठीक उपर शिवलिक पर्वत श्रृंखला के एक पर्वत शिखर पर मां मनसा देवी का पावन धाम है। जहां पर आप पैदल रास्ते के अलावा रोपवे से पहुंच सकते हैं।

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हरिद्वार का यह अति प्राचीन मंदिर है। मायादेवी को हरिद्वार की अधिष्ठात्री देवी माना जाता है। इन्हीं के नाम से हरिद्वार मायापुरी कहा जाता है।

हर की पौड़ी से तकरीबन तीन किलोमीटर दक्षिण में स्थित कनखल एक पौराणिक एवं ऐतिहासिक स्थल है। मान्यता है कि राजा दक्ष ने इसी स्थान पर यज्ञ किया था, जिसमें सती ने आत्मदाह किया था। यहीं पर दक्षेश्वर महादेव का मन्दिर है। इसके अलावा हरिद्वार में सैकड़ों की संख्या में आश्रम और मंदिर हैं, जिनके दर्शन से पुण्य की प्राप्ति होती है।

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महेश के. शिवा ganeshavoice.in के मुख्य संपादक हैं। जो सनातन संस्कृति, धर्म, संस्कृति और हिन्दी के अनेक विषयों पर लिखतें हैं। इन्हें ज्योतिष विज्ञान और वेदों से बहुत लगाव है।
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