देवभूमि उत्तराखंड के हरिद्वार को हरि का द्वार कहा जाता है। इसका प्राचीन नाम मायापुरी है। यहां का प्राकृतिक सौन्दर्य देखते ही बनता है। यहां का शांत वातावरण देखकर पर्यटक मंत्रमुग्ध हो जाते हैं। यहां की हरियाली, बहती गंगा नदी, शांत और मनोहर घाट पर्यटकों को बहुत ही ज्यादा आकर्षित करता हैं। यहां हर की पौड़ी एक प्रसिद्ध घाट है। इसे ब्रह्मकुंण भी कहते हैं। हरिद्वार में 5 घाटों का खास महत्व है।
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विष्णु घाट :
यह वह स्थान है जहां भगवान् विष्णु जी ने एक बार स्नान किया था। ऐसा माना जाता है कि इस घाट के पानी में एक बार डुबकी लगाने पर मनुष्य के सारे पाप धुल जाते हैं और यहां पर डुबकी लगाने से मनुष्य को धन की प्राप्ति होती है।
कुशावर्त घाट :
कुशावर्त घाट को भगवान दत्तात्रेय की समाधि स्थली कहा जाता है। कहा जाता है कि इसी घाट पर पांडवों और श्रीराम ने अपने पितरों का पिंडदान किया था। इसीलिए यहां पर स्नान करने से पितरों को शांति मिलती है और मोक्ष की प्राप्ति भी होती है।
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रामघाट :
कहा जाता है कि भगवान राम ने रावण का वध करने के बाद इसी घाट पर ब्रह्म हत्या से दोष से मुक्ति पाने के लिए तपस्या की थी। मान्यता यह है कि इस घाट पर स्नान करने से बड़े बुजुर्गों का आशीर्वाद तो मिलता ही है। साथ ही साथ व्यक्ति को मान सम्मान की प्राप्ति भी होती है।
नारायणी स्रोत :
इस घाट के बारे में कहा जाता है कि जब भगवान कृष्ण के ऊपर सर्प दोष लगा था। तब उनकी कुंडली में भी इसका असर देखा गया था। भगवान कृष्ण को इस दोष से मुक्ति दिलाने के लिए यहीं के गंगाजल से भगवान कृष्ण का स्नान करवाया गया था। कहते हैं कि यहां स्नान करने से सर्प दोष से मुक्ति मिलती है।
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ब्रह्मकुंड :
ब्रह्मकुंड को हर की पौड़ी भी कहा जाता है। यह सबसे खास घाट माना जाता है क्योंकि मान्यता है कि यहीं पर समुंद्र मंथन के दौरान अमृत की बूंदें कलश से छलक कर गिरीं थीं। कहा जाता है कि यहां पर डुबकी लगाने से करोड़ों जन्मों का पुण्य प्राप्त होता है और मोक्ष की प्राप्ति भी होती है।
यहां स्नान करने से अर्थ काम मोक्ष और धर्म चारों की प्राप्ति हो जाती है। इस स्थान पर स्नान करने से कभी भी मनुष्य की अकाल मृत्यु नहीं होती। इसी घाट पर विष्णु के पद चिन्ह होने की बात भी कही जाती है।