धर्म दर्शन

श्री हनुमान चालीसा के गुप्त रहस्य पार्ट 04

सूक्ष्म रूप धरि सियहि दिखावा। बिकट रूप धरि लंक जरावा।।

सीता जी को आपने अपना सूक्ष्म रूप दिखाया और अपना विशाल और डरावना रूप दिखाके लंका को जला दिया।
यहाँ पर हनुमानजी की सिद्धियों के बारे में बताया गया है जिसमे जरूरत के अनुसार अपने शरीर को बड़ा छोटा करने की क्षमता उनमे है. सीता जी को डर ना लगे इसलिए सूक्ष्म रूप या एक तरह से शक्ति से मिलने के लिए अपने को छोटा करना तभी शक्ति से भेंट संभव है।

अभिमान के सामने या बुराई के सामने अपने आप को उससे बड़ा बना लेना ताकि उस पर जीत हासिल की जा सके। समय अनुसार अपने रूप को बदलना ये हनमानजी हमें बता रहे है। ये जो छंद है ये सुंदरकांड से जुड़ा है जब हनुमानजी सीता जी से मिलते है और लंका का दहन भी करते है।

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प्रीति संजय, टैरो कार्ड रीडर

यहाँ हनुमानजी सीता जी से मिलते है और रामजी के बारे में बताते है और सीता जी से राम जी के लिए सुनते है, और बाद में रावण के सैनिक हनुमानजी को पकड़ लेते है तब हनुमानजी रावण के सामने अपनी पूंछ के छल्ले बना कर उनसे ऊपर जाकर बैठ जाते है जिससे रावण उनकी पूंछ में आग लगवा देता है फलस्वरूप लंका में आग लगती है।
ये अहंकारी को जवाब देने का तरीका है, जैसे भोले से शिव शंकर रूप में बहुत कोमल है और रौद्र रूप में अत्यंत विनाशकारी, बस रूप परिस्थिति अनुसार ढाल लेते है. एक जातक जिसने अपने आप को प्रभु का सेवक मान कर अपने attitude का हनन किया हो वो अत्यंत शक्तिशाली बन जाता है।

भीम रूप धरि असुर संहारे। रामचंद्र के काज सँवारे ।।

हनुमानजी भयानक रूप धर के राक्षसों का नास करते है और राम जी के कार्यों को पूरा करते है।
हनुमानजी राक्षसों को मारते है ये हम रामायण में कई जगह देखते है, असुर जो सुर में नहीं है उसे असुर कहते है, जब हमारे मन की भावना हमारे काबू से बाहर हो जाती है उसे भी असुर कहते है जो की एक मानसिक तरक्की (हनुमान) से ही संभव है ताकि हमारा मन (राम) हमारे वश में आ सके और अपने कार्य कर सके।
अगर रामायण की बात करुँ तो हनुमानजी सिहिका, सुरसा, लंकिनी को अलग अलग तरीके से पराजित करते है कहीं सूक्ष्म रूप धरती है, कही अपने आप को बड़ा करते है कही बुद्धि से पराजित करते है. कुछ जगह मादा राक्षस को ज्योतिष की खराब दशा तक माना जाता है जिसे हनुमानजी हरा सकने की क्षमता रखते है।
नर राक्षसों की बात करें तो कालनेमि या अहिरावण जैसे राक्षसों को हनुमानजी अपने बल व् सामर्थ्य से पराजित करते है, अपना पंचमुखी रूप दिखाते है जिसमे घोडा,शेर, बाज़,जंगली वराह भी है जो वानर से अलग है और अन्य शक्तियों से सम्पन्न है।
ये सब कार्य हनुमानजी राम जी के कार्यो के लिए करते है इसका मतलब उनका motive हर जगह धर्म ही होता है जिसकी वजह से उनकी शक्ति उनका भरपूर साथ देती है।

लाय संजीवन लखन जियाये। श्रीरघुबीर हरषि उर लाये।।

अर्थ – संजीवनी बूटी को लाके आपने लखन जी के प्राण बचाये थे और राम जी ने आपको ख़ुशी से गले लहै लिया।
जब लक्ष्मण और मेघनाद का भयंकर युद्ध होता है तब मेघनाद एक भयंकर सांपो के जहर का तीर लक्ष्मण जी पर चला देता है, जिससे लक्ष्मण जी होश खो देते है और धीरे धीरे उनके प्राणो पर बन आती है। तब हनुमानजी हिमालय पर संजीवनी बूटी लेने जाते है, जब रावण को ये बात पता चलती है के हनुमानजी पर्वत पर जा रहे है तो रावण कोशिश करता है के हनुमानजी सूरज उगने से पहले वापिस नहीं आ पाए इसके लिए रावण कालनेमि नाम के राक्षस की मदद लेता है।
कालनेमि साधु का भेष बनाकर हनुमानजी का काफी समय खराब करता है और उन्हें मूर्छित करने की कोशिश करता है लेकिन हनुमानजी उनकी असलियत पता कर लेते है और उस राक्षस का वध कर देते है।
संजीवनी जो की एक तरह का SOLUTION है या एक तरह की HELP है जो हमे घोर मुसीबत के समय चाहिए और कालनेमि उसमे बाधा डालने वाला, अब हनुमानजी को सूरज उगने से पहले ही पहुंचना है जो की मुश्किल है तो हनुमानजी सूर्य को अपनी बगल में दबा लेते है के अब कहाँ से उगेगा और पूरा पहाड़ लेकर उड़ जाते है।
इससे लक्ष्मण जी की जान बच जाती है और राम जी उन्हें प्रसन्नता से गले लगा लेते है। ये एक ऐसी अवस्था है के जब आप अपने में मग्न हो और आपका कार्य सिर्फ अपने प्रभु का काम करना है तब आप अति बल शाली हो, रावण सूर्य देव से प्रार्थना करता है क्यूंकि उसे जीत चाहिए हनुमानजी उस सूर्य को ही दबा लेने की ताकत रखते है क्यूंकि उन्हें प्रभु चाहिए दोनों तरफ शक्ति अलग अलग रूप रख रही है लेकिन हनुमानजी ज्यादा बलि साबित होते है और एक ऐसा solution लाते है जिससे लक्ष्मण जी के प्राण बच जाते है और निर्णय राम जी के पक्ष में जाता है।
कई मंदिरों में हनुमानजी की पहाड़ उठाये मूर्ति होती है जो की एक तरह के उपाय वाले हनुमानजी हो।

रघुपति किन्ही बहुत बड़ाई। तुम मम प्रिय भरतही सम भाई।।

राम जी हनुमानजी की तारीफ करते हैं, अपने भाई भरत के सामन उन्हे प्यार करते हैं। हनुमानजी राम जी की कई जगह मदद करते हैं और बदले मे कुछ भी नही मांगते,इससे प्रभावित होके राम जी उनकी प्रशंसा करते हैं।

यहाँ तुलना की गई है, जब भरत की माता कैकयी की वजह से राम जी को 14वर्ष का वनवास मिलता है तब भरत को ये सब पसंद नहीं आता और भरत जी उन्हे लेने वापस जाते है लेकिन वचन से बन्धे होने की वजह से रामजी वापस नहि जाते।
इसके बाद भरत जी उनकी चरनपादुका सिंहासन पर रख कर एक प्रतिनिधि की तरह शासन करते हैं। हनुमानजी की तुलना भरत जी से करने का मतलब,एक दास को दास ना समझकर परिवार का हिस्सा मानना और असमानता दूर करना। राम ही ऐसी शक्ती की धनी है जो दास को भाई जेसी पदवी दे सकते हैं।
एक मराठी रामायण है एकनाथ रामायण, उसमे एक छोटा सा किस्सा है, जब दशरथ जी संतान कामना के लिये यज्ञ करवाते है तो उन्हे स्वर्ग से एक फल की प्राप्ति होती है जिसे वो अपनी तीनों पत्नियों को दे देते है लेकिन उस फल का एक हिस्सा एक बाज़ लेकर उड़ जाता है और अन्ज्नी के मुहँ मे रख देता है, इस रामायण के अनुसार ये जनित पुत्र वानर होता है लेकिन राम का भाई ही होता है। ये चोपाई भेदभाव मिटाने के लिये की जा सकती है।

श्रीसुंदरकांड (हिंदी भावार्थ सहित)

सहस बदन तुम्हारो जस पावे। अस कहि श्रीपति कंठ लगावे।।

हनुमान चालीसा हम सब ने ही पढ़ी है यह चौपाई भी पता होती है सहस्त्र बदन तुम्हारो जस गावे अस कहि श्रीपति कंठ लगावे इसका आसान सा मतलब है कि हजारों लोग आपकी प्रशंसा करेंगे‌ ऐसा कहकर श्रीपति आपको गले से लगा लेते हैं। अब यह जो छंद है इस छंद में हनुमान जी की प्रशंसा शुरू हो जाती है। अभी तक हनुमान जी की उत्पत्ति स्वरूप हमें पढ़ी थी लेकिन यहां पर हनुमान जी की प्रशंसा करते हैं। राम जी जो हनुमान जी से कह रहे हैं कि हजारों लोग आपकी प्रशंसा करेंगे और यहां पर हमें वर्ड पढ़ते हैं श्रीपति, राम जी शब्द इस्तेमाल नहीं हुआ। श्री पति अर्थात श्री के पति तो कहीं ना कहीं यहां पर राम जी का जो संबंध, विष्णु जी से दिखाया गया है । श्री हम लक्ष्मी जी को मानते हैं और उनके पति विष्णु जी हैं तो कहीं ना कहीं यहां पर राम और सीता की जोड़ी को विष्णु और लक्ष्मी जी की जोड़ी माना गया है। जो रामायण में सीता जी हैं वह पुराणों में लक्ष्मी है और वेदों में उन्हें श्री बोला जाता है। श्री यह जो वर्ड है यह हमें ऋग्वेद में मिलता है और वे जो है वह सबसे प्राचीन वेद अभी तक का माना जाता है और यह जो शब्द है इसका मतलब होता है समृद्धि और प्रचुरता। हनुमान चालीसा का पहला शब्द भी श्री ही है, श्री हनुमान चालीसा है। भागवत गीता का पहला शब्द भी श्री है श्रीमद्भागवत गीता हनुमान चालीसा का पहला चंद का शुरुआत भी हम श्री से ही‌ करते‌ है। श्री गुरु चरण सरोज रज। श्री शब्द को हम मानते ही हैं कि यह शक्ति का सूचक है शक्ति का प्रतीक है । यहां तक कि गुरु से पहले भी श्री का उपयोग किया गया है। रामायण में भी कई जगह सीता को सबसे बड़ा गुरु माना गया है और कुछ शक्तियां हनुमान जी को सीता जी ने ही दी है। तो जहां कुछ लोग जो वैष्णव समाज के होते हैं हनुमान जी को विष्णु जी का दास।

सनकादिक ब्रह्मादि मुनिसा। नारद सारद सहित अहिसा ।।

सनक (ब्रह्मा के पुत्र),ब्रह्मा जी,मुनि नारदजी,सरस्वती,सर्पों के राजा आपकी प्रशंसा करते हैं। इसका मतलब है कि सनत, ब्रह्मा और अन्य ऋषि, नारद जी और सरस्वती जी अहिसा सर्पो के राजा को बोलते हैं, हमारी कुंडलिनी शक्ति को भी बोलते हैं, यह सब मिलकर हनुमान जी की प्रशंसा करते हैं। इसको हम समझते हैं सनकादिक जो ब्रह्मा जी के पुत्र से सनत कुमार उनको सनक भी बोलते हैं सना, सनत, सानंद भी उनका नाम है। ये छोटे बच्चे होते हैं, युवा बालक होते हैं जो ब्रह्मा जी के पुत्र थे और यह ज्ञान की तलाश में इधर-उधर भटकते ही रहते हैं। ना यह बड़े होते, ना यह बूढ़े होते हैं, सिर्फ अंतरिक्ष और समय के बीच में भटकते रहते हैं। ज्ञान की तलाश में सनत कुमार जो थे उनके बाद ब्रह्मा जी से जो पैदा हुए वो है नारद जी। जो एक व्यस्क थे (एडल्ट) और दुनियादारी में शामिल होते थे। वह भी ना बड़े होते ना बूढ़े होते लेकिन वह व्यस्क हैं और वो भौतिक दुनिया का हिस्सा नहीं बनते, बल्कि हर जगह लोगों को यही बताते घूमते हैं कि जो भौतिक दुनिया है वह बेमतलब है। यह नारद जी का एक रूप होता है और यह भी काफी हद तक ज्ञान की तलाश में भटकते रहते हैं। इसके बाद जो बोला है नारद सारद, सारद जो है वह सरस्वती माता को बोला जाता है। सारद एक लिपि भी है, जिससे शारदा नाम बनता है और शारदा से सरस्वती बनता है। ब्रह्मा जी का मन होता है कि वह सरस्वती को अपना लें, वह उन्हें पाना चाहते हैं लेकिन सरस्वती हमेशा ब्रह्मा जी से दूर भागती हैं क्योंकि जो सरस्वती हैं वह ज्ञान है जो रटके प्राप्त नहीं होता बल्कि समझ के प्राप्त होता है। सरस्वती हो गई एक ऐसी जानकारी जो समझी हुई जानकारी है और ब्रह्मा जी वह दिमाग हैं जिन्हें वेदों का ज्ञान है और वह उस ज्ञान की वजह से दुनिया को अपना रोब दिखाना चाहते हैं। तो सरस्वती ब्रह्मा के पास कभी नहीं।

जम कुबेर दिगपाल जहां ते। कबि कोबिद कहि सके कहां ते।।

इसका मतलब है कि जम कुबेर यानी यम और कुबेर दिगपाल जहां ते यानी बाकी दिशाओं के रक्षकबल अर्थात बाकी दिशाओं की रक्षा करने वाले। कवि और अन्य विद्वान लोग आपकी पूरी प्रशंसा नहीं कर सकते यह इस चौपाई का मेन सरल अर्थ है ‌।

अगर हम इस चौपाई को समझते हैं तो शुरुआत में यम कुबेर की बात की गई है जो कि उत्तर और दक्षिण दिशा के द्वार होते हैं यमराज दक्षिण दिशा के लेखपाल होते हैं और कुबेर उत्तर दिशा के लेखपाल होते हैं। उत्तर दिशा के मालिक हैं और यह भी बोला गया है कि बाकी दिशाओं के रक्षक यानी इंद्र और वरुण जो बाकी दिशाओं के रक्षक हैं वह भी आप की प्रशंसा करते हैं। वह तो पता ही है जैसे कि चार दिशाएं हैं और ध्रुव तारा दिशा दिखाता है, जिससे पता लगता है कि उत्तर, दक्षिण, पूर्व और पश्चिम कौन सी है तो रामायण के अनुसार जो दक्षिण दिशा हैं यहां पर मृत्यु के देवता यमराज का राज है या रामायण की पृष्ठभूमि पर समझे तो दक्षिण पर रावण का राज है जो अपने भाई को भगा देता है जोकि कुबेर है। कुबेर उत्तर में जाकर रहने लगता है। दक्षिण में लंका है और उत्तर के हिस्सा को अलंका को बोला जाता है। दक्षिण में लंका और उत्तर में अलंकार। रावण दक्षिण में बैठ कर दूसरे के भाग्य पर कब्जा करना चाहता है और उत्तर में कुबेर जी दूसरे लोगों को भाग्य देते हैं। एक तो भाग्य पर कब्जा कर रहा है और दूसरा भाग्य देता है , जो एक दूसरे से बिल्कुल अलग चीजें हैं, उलट है । यम लोगों को जिंदगी में डर देते हैं और कुबेर जिंदगी को उम्मीद देते हैं। जीने का डर और उम्मीद मिलकर एक जिंदगी बनाते हैं। एक तरफ डर होता है, एक तरफ उम्मीद होती है इधसे मिलकर एक जिंदगी बनती है। यह दोनों ही मिलकर हनुमान जी की पूजा करते हैं कि अगर हमें डर है या डर के जो देवता है वह हनुमान जी की पूजा करते हैं और अगर हमें उम्मीद है या जो उम।

तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा| राम मिलाये राज पद दीन्हा ||

आपने सुग्रीव पर बहुत उपकार किये, राम जी से मिलाकर आपने उन्हें राजा तक बना दिया। ये छन्द हमें सुग्रीव पर हनुमानजी के उपकारों के बारे में बताता है, बाली सुग्रीव दो भाई थे और किष्किंधा के राजा थे, बाली को इंद्र का पुत्र और सुग्रीव को सूर्य पुत्र माना जाता है, दोनों भाइयो में सब कुछ ठीक था लेकिन एक ग़लतफहमी की वजह से दोनों में भ्र्म की स्थिति होती है और भरोसा दोबारा कायम करने की बजाए बाली अधिक शक्तिशाली होने की वजह से सुग्रीव को निकाल देता है यही जंगल का कानून है।
हनुमानजी अपने गुरु सूर्य को वचन देते है के उनके पुत्र सुग्रीव की रक्षा करेंगे, हनुमानजी बाली से सुग्रीव को परेशान ना करने का वचन भी ले लेते है। हालाँकि हनुमानजी बाली को मारने तक की क्षमता रखते थे ऐसा भी वर्णन मिलता है लेकिन इंद्र से कोई भी दुश्मनी उनकी नहीं थी ना ही बाली से इसीलिए वो ऐसा नहीं करते, लेकिन सुग्रीव के प्राण बचाकर उनकी रक्षा जरूर करते है।
हनुमानजी ही सुग्रीव को रामजी से मिलवाते है क्यूंकि हनुमानजी रामजी को पहचान जाते है और उन्हें पता होता है के सुग्रीव और रामजी दोनों को एक दूसरे की जरूरत है, रामजी बाली का वध करते है और सुग्रीव को किष्किंधा का राज मिलता है।
रामजी बाली पर छुप कर तीर चलाते है जिसे बाली धोखा कहता है और रामजी से उसे जंगल का नियम कहते है के यदि वो उसे सामने से मारते तो राज्य उनका होता ना की बाली का, जंगल में राज्य दान में नहीं चलते साथ ही उन्होंने चालाकी की जो जंगल में मान्य है इसे धोखा नहीं कहते।
बाद में सुग्रीव अपने वादे को भूल जाता है और अपने राज्य में आराम से रहने लगता है जिससे लक्ष्मण जी क्रोधित होते है और किष्किंधा पर आक्रमण कर देते है, हनुमानजी पहले ही भांप जाते है और सुग्रीव की जान लक्ष्मण जी से बचा लेते है और उन्हें उनका वादे को पूरा करने के लिए कहते है। हनुमानजी ही सुग्रीव को हर जगह बचाते है और अंत में उन्हें राजा बना देते है साथ ही उनके कर्तव्य याद दिलाते रहते है|

तुम्हरो मंत्र विभीषण माना | लंकेश्वर भए सब जग जाना ||

रामचरितमानस में हमे ऐसा भी लिखा मिलता है लेकिन ऐसा वाल्मीकि रामायण में नहीं है के जब हनुमानजी जब सबसे पहले लंका पहुंचे तब वे विभीषण से मिले थे और जब हनुमानजी को पता चला के ये रावण के छोटे भाई है तो हनुमानजी ने बहुत बड़ी कूटनीति खेली।
उन्होंने विभीषण को बताया के यहाँ राम जी आ रहे है और सब कुछ यहाँ समाप्त होगा, विभीषण जो पहले से ही सीता हरण से सहमत नहीं थे क्यूंकि ये नैतिक, व्यवहारिक और धार्मिक रूप से सही नहीं है।
हनुमानजी विभीषण से कहते है के अपने भाई रावण को समझाओ के ये गलत है लेकिन जब ऐसा होता है तो विभीषण को रावण लंका से बाहर निकाल देता है। हनुमानजी विभीषण को भ्रातृ प्रेम से निकलकर रामजी से जुड़ने की सलाह देकर आ जाते है। बाद में विभीषण लंका की और रावण की अनेक कमजोरियां बताता है जिसकी वजह से विभीषण लंका का राजा बनता है। हनुमानजी की एक छोटी सी सलाह उन्हें लंका का राजा बना देती है।
हनुमान विभीषण को वफादारी से ऊपर धर्म को रखने की सलाह देते है, जिसकी वजह से छवी दांव पर लग जाती है, लेकिन जीव कल्याण अपनी छवि से ऊपर होता है।
ये चोपाई हमे एक अच्छी सलाह की जरूरत के समय पर करनी चाहिए ताकि कोई हनुमानजी जैसा सलाहकार हमे अच्छी सलाह दे सके |

जुग सहस्र जोजन पर भानु | लील्यो ताहि मधुर फल जानू ||

दूर सुदूर सूरज को आपने मीठा फल समझ लिया। जुग सहस्त्र जोजन, ये सूरज और पृथ्वी के बीच की दूरी बताता है, जुग यानी युग 1200, सहस्त्र 1000 यानी योजन को 8 मील मानते है, इस हिसाब से लगभग 150,000,000 किलोमीटर है पृथ्वी और सूरज के बीच की दूरी।
इसका मतलब ये है हनुमान जी इतनी दूरी कैसे तय करते है या तो वो समय को रोकना जानते है या अपने आकार को बहुत ज्यादा बड़ा करना जानते है या वो दोनों काम एक साथ करते है, क्यूंकि सूरज तक पहुंचना ही बहुत मुश्किल बात है। ये सब हनुमानजी ने जब किया जब वो बच्चे थे और कोई उन्हें सीखाने वाला नहीं था।
जब हनुमानजी सूरज की तरफ जा रहे थे तो रास्ते में आने वाले सभी ग्रह नक्षत्रों को दूर कर देते है, उन्हें कुछ नहीं समझते। जिन ग्रह नक्षत्रों से मनुष्य जीवन उथल पुथल हो जाता है उन्हें हनुमानजी पैर मार के दूर कर देते है इसका मतलब हनुमानजी के पास कुंडली के ग्रह नक्षत्रो को सही जगह पहुँचाने की क्षमता है, इसलिए वो इंसान की नियति बदल सकते है।
हमे कथाओं से पता चलता है के सूर्य उनके लिए रसीला फल है, संजीवनी बूटी की तलाश करते है समय उन्होंने सूर्य को बगल में दबा लिया था ताकि सूर्य उग ना सके, इसका मतलब हनुमानजी ग्रह की नकारात्मकता दूर करने की शक्ति रखते है।
रावण बहुत बड़ा ज्योतिषी माना जाता है जो ग्रहो की चाल में हेर फेर कर के भाग्य चमका लेता है लेकिन हनुमानजी को भाग्य से लेना देना नहीं है वो समर्पित है इसलिए उनके लिए ग्रह मात्र खिलौना है।
ये चोपाई हम ग्रह पीड़ा से मुक्ति के लिए कर सकते है, या एक ज्योतिष या वास्तु के प्रभाव से ऊपर उठने के लिए कर सकते है लेकिन हनुमानजी का किरदार भी समझना जरूरी है|

।। जय श्रीराम।।
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श्रीसुंदरकांड (हिंदी भावार्थ सहित)

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महेश कुमार शिवा ganeshavoice.in के मुख्य संपादक हैं। जो सनातन संस्कृति, धर्म, संस्कृति और हिन्दी के अनेक विषयों पर लिखतें हैं। इन्हें ज्योतिष विज्ञान और वेदों से बहुत लगाव है।
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