सहारनपुर। यूृं तो मां जगदम्बे को अनेकों नामों से जाना जाता है, अनेक उत्सवों पर मेले भी आयोजित किए जाते हैं, लेकिन यूपी के सहारनपुर में देवी का एक ऐसा मंदिर भी है, जहां पर मां देवी आंधी और तूफान के साथ मंदिर परिसर में प्रवेश करती है। पौराणिक ग्रंथों में कहा जाता है कि जिस स्थान पर यह मंदिर बना है, वहां पर मां गौरी का अंग गिरा था, जिस कारण यहां पर सिद्ध शक्ति पीठ की स्थापना हुई।
सहारनपुर जनपद मुख्यालय से 46 किलोमीटर दूर स्थित देवबंद नगर में देवी के मां बाला सुंदरी स्वरुप की पूजा अर्चना की जाती है। चैत्र नवरात्र के बाद आने वाली चतुर्दर्शी के अवसर पर यहां पर भव्य मेला आयोजित किया जाता है। फतवों के शहर से दुनियाभर में मशहूर देवबंद इस्लामिक संस्था दारुल उलूम के अलावा धार्मिक दृष्टि से भी बेहद ही महत्वपूर्ण है। देवबंद नाम का उत्तरांश (बंद शब्द) वन का बिगड़ा हुआ रुप है। कहते हैं कि यहां सहस्त्रों वर्ष पूर्व एक गहन सघन वन था। देवी दुर्गा यहां पर निवास करती थी। देवी के निवास के कारण इस वन को देवी वन अथवा देवीवन कहा जाने लगा। जो कालांतर में मुगल शासकों के प्रभाव में देवीबंद हो और बाद में देवबंद कहा जाने लगा। यहां पर 18 हजार वर्ग गज लंबा चौड़ा प्राचीन सरोवर है, जिसे देवीकुंड कहा जाता है।
पौराणिक कथाओं के अनुसार यह वही कुंड है, जहां दुर्ग नाम महाअसुर का संहार देवी ने किया था। देवी के इस रुप को यहां पर मां बाला सुदंरी के नाम से जाना जाता है। मां बाला सुंदरी का मेला चैत्र शुक्ल चतुर्दर्शी में आयोजित किया जाता है। इस मेले को दलित चौदस भी कहा जाता था। अतीत के पन्ने पलटने से पता चलता है कि अधिकांश दलित किसान हाली (खेत मजदूर) के रुप में कार्य करते थे। किसान और हाली के बीच संविदा का अंतिम दिन चौदस ही समझा जाता था।
संविदा का अंतिम कार्य के रुप में दलित हाली बिटौड़ों की चोटी बांधकर माता के दर्शन करने देवबंद जाते थे। मां बाला सुंदरी देवी सात्विक और शाकाहारी है, किंतु इनकी प्रतिमा के पीछे बकरे की बलि दी जाती थी, प्रतीक के रुप में आज भी मेले के समय श्रद्धालु माता को बकरा चढ़ाते हैं।
यहां गिरा था मां गौरी का अंग, कहलाई मां बाला सुंदरी देवी अन्य पौराणिक कथाओं के अनुसार जब मां गौरी के पिता राजा दक्ष ने अपने राज्य में यज्ञ कराया था तो राजा दक्ष ने सभी देवी देवताओं को यज्ञ में आमंत्रित किया, लेकिन उनकी अपनी पुत्री मां गौरी (सती) और उनके पति देवाधि देव महादेव शंकर को इस यज्ञ में आमंत्रित नहीं किया था। मां गौरी ने महादेव से यज्ञ में भाग लेने के लिए कहा तो महादेव ने यह कहते हुए जाने से मना कर दिया था कि राजा दक्ष द्वारा उन्हें आमंत्रित नहीं किया गया है तो वे यज्ञ में भाग लेने नहीं जाएंगे। लेकिन मां गौरी फिर भी अपने पिता राजा दक्ष द्वारा आयोजित यज्ञ में भाग लेने के लिए चली गई। इस यज्ञ के दौरान मां गौरी सती हो गई थी और भगवान शंकर उनके पार्थिव शरीर को अपनी गोद में उठाकर तीनों लोकों का भ्रमण कर रहे थे। तब भगवान विष्णु ने भोलेनाथ का मां गौरी से ध्यान भंग करने के लिए अपने सुदर्शन चक्र से मां गौरी के पार्थिव शरीर के टुकडे कराकर अलग किया था। उस वक्त जहां जहां मां सती के पार्थिव शरीर के अंग गिरे, वहां वहां पर शक्ति पीठों की स्थापना हुई। देवबंद में मां गौरी का गुप्तांग गिरा था।
देवी मंदिर के सतेंद्र शर्मा बताते हैं कि देवबंद में स्थित श्री त्रिपुर मां बाला सुंदरी के ऐतिहासिक और प्राचीन मंदिर में आज भी मां के स्नान के समय चुड़ियां खनकने की आवाज सुनाई पड़ती है। लेकिन यह आवाज हर किसी को नहीं सुनाई पड़ती। मां के प्रिय भक्त को ही इसका सौभाग्य प्राप्त होता है। 15 सेमी. ऊंचे व 10 सेमी. व्यास के लालिमायुक्त धातुनिर्मित मूर्ति यहां स्थापित है, जो कांसे के गिलासनुमा आवरण से ढकी रहती है। श्रद्धालु केवल इस गिलासनुमा आवरण के ही दर्शन करते हैं।
आती है आंधी, होती है बरसात
देवी दुर्गा के स्वरुप श्री त्रिपुर मां बाला सुंदरी के विराजमान होने के प्रमाण इसी बात से मिलते हैं कि जब मां देवी यहां स्थित मंदिर में प्रवेश करती है तो तेज आंधी आती है और बारिश होती है। शक सम्बत् के अनुसार चैत्र माह की चतुर्दर्शी पर यहां प्रति वर्ष आयोजित होने वाले मेले के प्रथम दिन सायंकाल के समच मौसम अचानक अपना रंग बदलता है। तेज आंधी चलने लगती है और बारिश होती है। कहा जाता है कि तेज आंधी का चलना और बारिश आना देवी दुर्गा के अपने मंदिर में प्रवेश करने का प्रतीक है। यह आंधी और बारिश केवल देवबंद क्षेत्र में ही आती है। इस दौरान श्रद्धालुओं के लिए लगाए गए तंबू आदि सभी गिर जाते हैं।
पांडव पुत्रों ने ली थी शरण
महाभारत काल में अज्ञात वास के दौरान पांडव पुत्रों ने यहां वनों में शरण ली थी और देवी की पूजा-अर्चना की थी। मार्कण्डेय पुराण के अनुसार देवताओं की पुकार पर मां भगवती ने यहां पर राक्षसों का वध किया था। तभी घने जंगलों के बीच मां त्रिपुर बाला सुंदरी शक्ति पीठ की स्थापना हुई थी। यहां देवता वनों में विहार करते थे, तभी इसका शहर का नाम देववृंद हुआ। कालांतर में
यह नाम देवबंद हो गया।
राजा मराठा ने कराया था जीर्णोद्धार
समय की प्राचीनता के साथ मंदिर के प्रवेश द्वार पर अंकित तीन चौथाई भित्ती चित्र नष्ट हो चुके हैं। राजा रामचंद्र मराठा द्वारा इस मंदिर का अंतिम जीर्णोद्धार कराए जाने की बात भी कही जाती है। इतिहासकार बताते हैं कि यहां पर सूर्यकुंड का भी उल्लेख मिलता है। मां श्री त्रिपुरा
बाला सुंदरी देवी मंदिर के प्रवेश द्वार के ऊपर प्राचीन भाषा में एक शिलालेख लगा है, कहा जाता है कि इस शिला पर लिखी भाषा को आज तक कोई नहीं पढ़ सका।