पंडित नरेश कुमार शिवा
जब कोई व्यक्ति अपने पुत्र अथवा पुत्री की जन्म कुंडली किसी ज्योतिषी को दिखाते हैं तो ज्योतिषी जब यह बताते हैं कि आपकी पुत्री या पुत्र मांगलिक हैं तो यह चिंता करने का विषय हो जाता है। और वह युवा पुत्र पुत्री के लिए मांगलिक जीवनसाथी की तलाश करने लगता है।
मैं आपको इस समस्या का समाधान एवं इस पर पूर्ण जानकारी बताना चाहता हूं कि मांगलिक जातकों की कमी नहीं है, क्योंकि प्रतिदिन 24 घंटों मे से करीब 10 घंटों मांगलिक बच्चे पैदा होते हैं। इस प्रकार 41.66 प्रतिशत प्रतिदिन बच्चे मांगलिक पैदा होते हैं।विवाह में देरी का कारण:
मांगलिक योगों की संख्या भी 12गुणा5 बराबर 60 है। जो अलग अलग प्रकार के फल देते हैं,इनमें से 9 प्रकार के योग तो रोचक होते हैं। रोचक योगों की संख्या भी 12 होती है। रोचक योग में जन्म लेने वाला जातक सर्जन चिकित्सक, वकील, इलेक्ट्रानिक इंजीनियर एवं पुलिस सेवा में अच्छा नाम कमाते हैं। मेष राशि का मंगल जब लग्न चतुर्थ एवं सप्तम भाव में तथा इसी प्रकार वृश्चिक राशि का मंगल लग्न, चतुर्थ व सप्तम भाव में और उच्च राशि का मंगल लग्न चतुर्थ एवं सप्तम भाव में होते हैं तो वे जातक मांगलिक होने के साथ साथ रोचक योग में भी होते हैं।
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इसके इतिरिक्त मांगलिक दोष के परिहार भी शास्त्रों में बहुत से मिलते हैं। जैसे नीच का मंगल अष्टम भाव में हो एवं मंगल अस्त हो तो वे मंगल की युति लग्न चतुर्थ, सप्तम भाव में चंद्रमा के साथ हो, द्वितीय भाव में चंद्र—शुक्र की युति हो, शुभ ग्रहों की दृष्टि सप्तम भाव एवं सप्तमेश बलि होकर केंद्र में हो, ये सभी परिहार मांगलिक दोष को दूर करते हैं।
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सप्तमेश एवं पंचमेष का स्थान परिवर्तन, सप्तमेश—पंचमेष की आपस में दृष्टि, सप्तमेश—पंचमेष की किसी भी स्थान में युति प्रेम विवाह कराती है। इसमें मंगल दोष बाधक नहीं बनता है।
हम केवल मांगलिक दोष को ही विवाह में बाधा में मंगल को ही दोषी मानते हैं, ये सरासर गलत है, जबकि क्रूर ग्रह मंगल, शनि, सूर्य, राहु, केतु किसी भी रुप में सप्तम भाव को प्रभावित करते हैं तो विवाह में बाधाएं आती हैं। शनि तीस वर्ष के बाद विवाह कराता है तो सूर्य बार बार रिश्ते तुडवाडता है। राहु और केतु झगडे व अलगाव कराता है।
राहु यदि प्रेम विवाह में योग में अपना साथ देता है तो जातक प्रेम बंधन के लिए धर्म, जाति आदि से भी नहीं डरता है। जबकि इसके अतिरिक्त गुरु पंचमेष—सप्तमेश विवाह बाधक नक्षत्र यदि जन्म कुंडली में हो कृत्रिका, उत्तराफाल्गुनी, उत्तराषाढा, मंगसिरा, चित्रा, धनिष्ठा, आर्दा, स्वाति, सतवीशा, पुष्य, अनुराधा एवं उत्तरा भाद्रपद में तो भी विवाह में बाधाएं आती हैं। इसके अतिरिक्ति सप्तमेश छठे या आठवें भाव में हो एवं आठवें व छठें भाव के स्वामी सातवें भाव में हो तो विवाह में बाधा आती है।
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इनके अतिरिक्त भी विवाह में बाधा के अनेक योग होते हैं, जातक के मांगलिक नहीं होने पर भी जातक के विवाह में परेशानियां आती हैं। केवल मंगल ग्रह को दोष देना उचित नहीं हैं। इन सबके लिए अच्छा है कि आप अपने पुत्र पुत्री की जन्म कुंडली किसी विद्वान ज्योतिषी को ही दिखाएं।