Kalashtami 2023 : प्रत्येक माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि कालाष्टमी के रुप में मनाई जाती है। कालाष्टमी के समय कालभैरव के पूजन का विधान रहा है। (Kalashtami 2023) कालाष्टमी का पूजन सभी प्रकार की नकारात्मक शक्तियों से बचाव करता है तथा भय, एवं रोग से मुक्ति प्रदान करने वाला होता है। (Kalashtami 2023) भगवान शिव के काल भैरव स्वरुप का पूजन करने से भक्तों के सभी कष्ट दूर होते हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस तिथि के दिन काल भैरव का आगमन हुआ था अत: इस दिन को कालाष्टमी के रुप में मनाए जाने की परंपरा चली आ रही है।
Kalashtami 2023
कालाष्टमी पूजन शुभ मुहूर्त
अष्टमी तिथि का प्रारम्भ 12 मई 2023 को 09:06 बजे
अष्टमी तिथि की समाप्ति 13 मई 2023 को 06:51 बजे
ज्येष्ठ माह के कृष्णु पक्ष की कालाष्टमी 12 मई 2023 शुक्रवार के दिन मनाई जाएगी। इस बार कालाष्टमी के दिन शुभ योगों का प्रभाव भी देखने को मिलेगा जिसके द्वारा पूजा की शुभ फलों में वृद्धि होगी और साधकों की सभी मनोकामनाएं भी पूर्ण होंगी। कालाष्टमी के दिन व्रत रखने का विधान भी रहा है। कालाष्टमी का व्रत साधक के लिए अत्यंत शुभदायक होता है। इस समय पर की गई पूजा सिद्धियों को प्रदान करने वाला होती है।
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कालाष्टमी पर बनेंगे शुभ योग
पंचांग अनुसार, ज्येष्ठ माह में मनाई जाने वाली कालाष्टमी के दिन एक साथ कई योगों का निर्माण हो रहा है। यह योग इस प्रकार रहेंगे। सर्वार्थ सिद्धि योग, सूर्य योग, ब्रह्म योग तथा शुक्ल योग का निर्माण होगा। 12 मई को सप्तमी तिथि की समाप्ति प्रात:काल हो जाएगी और इसके पश्चात अष्टमी तिथि का आरंभ होगा। अत: 12 तारीख को ही कालाष्टमी का व्रत संपन्न होगा। कालाष्टमी के दिन सुबह के समय शुक्ल योग मौजूद होगा तथा उसके पश्चात ब्रह्म योग की प्राप्ति होगी।
कालाष्टमी पूजा विधि
कालाष्टमी के दिन प्रात:काल समय से ही पूजा का आरंभ होता है। कालभैरव बाबा की पूजा एक तो साधारण होती है और दूसरी तांत्रिक। यहां साधारण पूजा के बारे में जानकारी दी गई, क्योंकि तंत्र पूजा के दौरान जरा सी चूक भारी पड़ सकती है। इस दिन भगवान शिव के स्वरूप काल भैरव की पूजा में शुद्ध चित्त मन के साथ साधना करना अनुकूल होता है। इस दिन पूजा स्थान पर कालभैरव की स्थापना के साथ भगवान शिव और देवी पार्वती की प्रतिमा अथवा चित्र स्थापित करना चाहिए।
भगवान की पूजा में सफेद लाल और नीले रंग के फूलों का उपयोग शुभदायक होता है। भगवान के समक्ष धूप दीप प्रज्जवलित करना चाहिए। व्रत का संकल्प लेकर पूजा आरंभ करनी चाहिए। कालभैरव पूजा एवं मंत्र जाप द्वारा साधना करनी चाहिए। भैरव चालीसा का पाठ करना चाहिए तथा भोग में मीठे पुओं का भोग अर्पित करना चाहिए। इस दिन काले कुत्ते को दूध पिलाना चाहिए, क्योंकि कुत्ता कालभैरव के वाहन रुप में स्थान पाता है।
काल भैरव मंत्र:
-अतिक्रूर महाकाय कल्पान्त दहनोपम्,
भैरव नमस्तुभ्यं अनुज्ञा दातुमर्हसि!!
-ॐ कालभैरवाय नम:
-ॐ ह्रीं बं बटुकाय आपदुद्धारणाय कुरूकुरू बटुकाय ह्रीं ।।
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