Vat Savitri 2022

Vat savitri 2022 : कब है वट सावित्री व्रत? कथा एवं महत्व

Vat Savitri 2022 Vrat 2022 Date: एक समय की बात है (Vat Savitri 2022) कि मद्रदेश में अश्वपति नाम के महान प्रतापी (Vat Savitri 2022) और धर्मात्मा राजा राज्य करते थे, उनके कोई संतान न थी। पंडितों के कथनानुसार राजा ने संतान हेतु यज्ञ करवाया। उसी के प्रताप से कुछ समय बाद उन्हें कन्या की प्राप्ति हुई, जिसका नाम उन्होंने सावित्री रखा। समय बीतता गया और कन्या बड़ी होने लगी।

जब सावित्री को वर खोजने के लिए कहा गया तो उसने द्युमत्सेन के पुत्र सत्यवान को पति रूप में वरण कर लिया। आपको बता दें कि इस साल वट सावित्री व्रत 30 मई को रखा जाएगा।

Vat Savitri 2022

Vat Savitri 2022
Vat Savitri 2022

इधर यह बात जब महर्षि नारद को मालूम हुई तो वे राजा अश्वपति के पास आकर बोले कि आपकी कन्या ने वर खोजने में बड़ी भारी भूल की है। सत्यवान गुणवान तथा धर्मात्मा अवश्य है, परंतु वह अल्पायु है।

एक वर्ष बाद ही उसकी मृत्यु हो जाएगी। नारद जी की बात सुनकर राजा उदास हो गए। उन्होंने अपनी पुत्री को समझाया, हे पुत्री! ऐसे अल्पायु व्यक्ति से विवाह करना उचित नहीं है, इसलिए तुम कोई और वर चुन लो।’

इस पर सावित्री बोली, ‘तात! आर्य कन्याएं अपने पति का वरण एक ही बार करती हैं, अतः अब चाहे जो हो, मैं सत्यवान को ही वर रूप में स्वीकार करूंगी। सावित्री के दृढ़ रहने पर आखिर राजा अश्वपति विवाह का सारा सामान और कन्या को लेकर वृद्ध सचिव सहित उस वन में गए जहां राजश्री से नष्ट, अपनी रानी और राजकुमार सहित एक वृक्ष के नीचे द्युमत्सेन रहते थे। विधि-विधान पूर्वक सावित्री और सत्यवान का विवाह कर दिया गया।

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Vat savitri 2022 मृत्युकाल आने के पहले ही सावित्री करने लगी उपवास

वन में रहते हुए सावित्री अपने सास-ससुर और पति की सेवा में लगी रही। नारद जी के बताए अनुसार पति के मरण काल का समय पास आया तो वह उपवास करने लगी। नारद जी ने पति की मृत्यु का जो दिन बताया था, उस दिन जब सत्यवान कुल्हाड़ी लेकर लकड़ी काटने के लिए वन में जाने को तैयार हुआ, तब सावित्री भी अपने सास-ससुर से आज्ञा लेकर उसके साथ वन को चली गयी। वन में सत्यवान ज्यों ही पेड़ पर चढ़ने लगा, उसके सिर में असह्य पीड़ा होने लगी। वह सावित्री की गोद में अपना सिर रखकर लेट गया।

Vat Savitri 2022
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यमराज के पीछे-पीछे चल पड़ी सावित्री

थोड़ी देर बाद सावित्री ने देखा कि अनेक दूतों के साथ हाथ में पाश लिए यमराज खड़े हैं। यमराज सत्यवान अंगुष्ठ प्रमाण जीव को लेकर दक्षिण दिशा की ओर चल दिए। सावित्री भी यमराज के पीछे-पीछे चल दी। सावित्री को आते देख यमराज ने कहा, ‘हे पतिपरायण! जहां तक मनुष्य मनुष्य का साथ दे सकता है, वहां तक तुमने अपने पति का साथ दे दिया, अब तुम वापस लौट जाओ।’ यह सुनकर सावित्री बोली, ‘जहां तक मेरे पति जाएंगे, वहां तक मुझे जाना चाहिए, यही सनातन सत्य है।

वरदान में मांगी सास ससुर की नेत्र ज्योति और राज्य
यमराज ने सावित्री की धर्मपरायण वाणी सुनकर वर मांगने को कहा, सावित्री ने कहा, ‘मेरे सास- ससुर अंधे हैं, उन्हें नेत्र ज्योति प्रदान कर दें।’ यमराज ने ‘तथास्तु’ कहकर उसे लौट जाने को कहा, किंतु सावित्री उसी प्रकार यम के पीछे-पीछे चलती रही। यमराज ने उससे पुनः वर मांगने को कहा। सावित्री ने वर मांगा, ‘मेरे ससुर का खोया हुआ राज्य उन्हें वापस मिल जाए।’ यमराज ने फिर से ‘तथास्तु’ कह कर उसे लौट जाने को कहा, परंतु सावित्री अडिग रही।

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अंतिम वरदान में मांगे पति से सौ पुत्र
सावित्री की पति भक्ति और निष्ठा देखकर यमराज अत्यन्त द्रवीभूत हो गए। उन्होंने सावित्री से एक और वर मांगने के लिए कहा, तब सावित्री ने यह वर मांगा कि ‘मैं सत्यवान के सौ पुत्रों की मां बनना चाहती हूं, कृपा कर आप मुझे यह वरदान दें।’ सावित्री की पति भक्ति से अत्याधिक प्रसन्न हो इस अंतिम वरदान को देते हुए यमराज ने सत्यवान को अपने पाश से मुक्त कर दिया और वे अदृश्य हो गए। सावित्री अब उसी वट वृक्ष के पास आई।

वटवृक्ष के नीचे पड़े सत्यवान के मृत शरीर में जीवन का संचार हुआ और वह उठकर बैठ गया। सत्यवान के माता-पिता की आंखें ठीक हो गईं और उनका खोया हुआ राज्य वापस मिल गया। इससे सावित्री के अनुपम व्रत की कीर्ति सारे देश में फैल गई।

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इस प्रकार यह मान्यता स्थापित हुई कि सावित्री की इस पुण्य कथा को सुनने पर तथा पति भक्ति रखने पर महिलाओं के सम्पूर्ण मनोरथ पूर्ण होंगे और सारी विपत्तियां दूर होंगी। प्रत्येक सौभाग्यवती नारी को वट सावित्री का व्रत रखकर यह कथा सुननी चाहिए। जिस दिन की यह घटना थी वह ज्येष्ठ मास की अमावस्या की तिथि थी, इसीलिए प्रत्येक वर्ष इस तिथि को सुहागिन महिलाएं अपने सौभाग्य अक्षुण्ण रखने तथा सुख समृद्धि और स्वास्थ्य की कामना में वट सावित्री व्रत रखती है। इस वर्ष यह व्रत 30 मई को है।

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