Ajab gajab : कई प्रकार के मंदिर व मठों के बारे में लोगों ने सुना है और देखा भी होगा लेकिन तंत्रपीठ या तांत्रिक मंदिर के बारे में कम ही लोग जानते होंगे। यह मंदिर राजस्थान के कोटा जनपद के रटलाई कस्बे में हैं। तंत्रपीठ के चलते रटलाई कस्बे को तांत्रिक नगरी भी कहते हैं। पुरानी पंचायत भवन के पास लाल पत्थर के खंभों एवं शिलाओं से बने स्थान को स्थानीय लोग ढाबा कहते हैं लेकिन इतिहास में यह उल्टा मंदिर या तंत्रपीठ के नाम से दर्ज है।
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13वीं शताब्दी का यह मंदिर प्राचीन स्थापत्य कला का बेजोड़ नमूना है। इतिहासविदों का कहना है कि इस मंदिर का गुंबद जमीन में धंसा है, पटाव या फर्श ऊपर की ओर है। खंभों पर लगी चौकियां भी ऊपर की ओर हैं। इसलिए इसे उल्टा मंदिर नाम दे दिया गया।
मंदिर के स्तम्भ पर 158 अंकित है जो संभवत: इसके निर्माण काल को दर्शाता है। इस आधार पर इस तंत्रपीठ का निर्माण 1800 वर्ष पूर्व हुआ था।
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उल्टा मंदिर के निर्माण के लिए नींव नहीं है। इसमें चुनाई भी नहीं है और इसका मुख्य द्वार भी पश्चिम दिशा की ओर है। इसमें किसी भी प्रकार के रेत, चूना या किसी केमिकल का उपयोग नहीं किया गया है। इसका निर्माण लाल से किया है। इसका आकार आयताकार है। 17 पाषाणी खंभों तथा 22 पट्टियों के इस पीठ में दो द्वार है। एक पूर्व में और दूसरा पश्चिम में।
18 खंभों पर टिके इस मंदिर के निर्माण में रेत-चूना-गारा आदि का इस्तेमाल नहीं हुआ है। ये सिर्फ शिलाओं से बना है और उसी पर टिका है।
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मंदिर में बावन भैरू, चौसठ जोगनिया, काली-कंकाली, हनुमान, शिवजी की मूर्तियां हैं। लेकिन, जर्जर हो चुके इस मंदिर में पुजारी है यहां लोग सामान्य दिनों में पूजा करने आते हैं।
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किंवदंती भी है इस मंदिर को लेकर
बुजुर्गों के अनुसार कुछ तांत्रिक तंत्र विद्या से इस मठ को हवाई मार्ग से उड़ाकर अज्ञात स्थान पर ले जा रहे थे। इसी बीच रटलाई के लोगों को पत्थर के ढांचे को आसमान में देखा तो दंग रह गए और उन्होंने शोर मचाया। ऐसे में तांत्रिकों ने इसे रटलाई में उतारने का निर्णय लिया और अपनी तंत्र विद्या से कठोर चट्टानों पर उल्टा उतार दिया। तब से इसे उल्टा ढाबा या उल्टा मंदिर कहते हैं।
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