Vat Savitri Vrat 2022 : पति की दीर्घायु और परिवार(Vat Savitri Vrat) की सुख समृद्धि के लिए महिलाएं 30 मई को वट सावित्री का व्रत (Vat Savitri Vrat) रखेंगी। इस दिन महिलाएं बरगद के पेड़ के नीचे पूजन कर अपने पति के जीवन की रक्षा और परिवार में सभी सदस्यों की सुख सुविधाओं यश वैभव की कामना करेंगी जिस तरह सावित्री ने व्रत रख कर अपने मृत पति सत्यवान को जीवित ही नहीं कराया बल्कि अपने सास ससुर की खोई हुई यश कीर्ति और राज्य को वापस दिलाया।
Vat Savitri Vrat 2022
क्यों की जाती है बरगद के पेड़ के नीचे पूजा/ Vat Savitri Vrat 2022
वट यानी बरगद, बरगद का पेड़ अपनी विशालता का प्रतीक है जो संयुक्त परिवार को भी प्रदर्शित करता है। इस वृक्ष में त्रिदेव यानी जड़ में ब्रह्मा जी, तने में विष्णु जी और सबसे ऊपर शाखाओं और पत्तों में भगवान शकर का वास माना जाता है, त्रिदेव के वास के कारण ही इसे देववृक्ष की संज्ञा भी दी गई है। यही कारण है कि सबसे विशाल और छायादार वृक्षों में इसे माना जाता है।
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ज्येष्ठ मास की तपती धूप में महिलाएं कैसे पूजन कर सकेंगी इसीलिए इस वृक्ष को चुना गया। वैसे सावित्री के पति सत्यवान ने जिस पेड़ के नीचे अपने प्राण त्यागे थे वह भी वट का वृक्ष ही था, घना छायादार वृक्ष और ज्येष्ठ मास में जब सूर्यदेव अपने पूरे तेज पर होते हैं, तब इस वृक्ष की छाया के नीचे पूजन करने का विधान है। अब वर्तमान समय में यदि किसी महिला के घर के आसपास बरगद का पेड़ नहीं है तो वे बरगद की डाली को घर के आंगन में मिट्टी के ढ़ेर के बीच लगा कर आकर्षक चौक पूर कर पूजन करती हैं।
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ऐसे करना चाहिए वट सावित्री व्रत पूजन/ Vat Savitri Vrat 2022
ज्येष्ठ मास की अमावस्या के दिन वट वृक्ष की जड़ में जल चढ़ा कर तने पर रोली का टीका लगाया जाता है, इसके बाद चना, गुड़, घी आदि अर्पित करने के साथ ही देसी घी का दीपक प्रज्वलित किया जाता है। पूरी श्रद्धा के साथ कच्चे सूत से वृक्ष की पत्तियों की बनी हुई माला पहन कर सावित्री सत्यवान की कथा को सुनना या पढ़ना चाहिए। इसके बाद वट वृक्ष की 108 या यथाशक्ति परिक्रमा करते हुए अपने पति और परिवार के स्वास्थ्य, धन वैभव सुख समृद्धि की कामना करना चाहिए।
वट वृक्ष के मूल को हल्दी से रंगे हुए सूत को लपेटते हुए फिर से माता सावित्री का ध्यान करते हुए अर्घ्य देना चाहिए। पूजन के बाद घर आकर अपनी सास, पति व अन्य लोगों के चरण स्पर्श कर आशीर्वाद प्राप्त करना चाहिए। वट सावित्री का व्रत वैवाहिक और दांपत्य जीवन को सुखी बनाने तथा अल्पायु योग को दीर्घ आयु में बदलने का सुगम साधन है।
ये है वट सावित्री-सत्यवान व्रत कथा/ Vat Savitri Vrat 2022
मद्र देश के राजा अश्वपति के कोई संतान नहीं थी जिसके कारण वे दुखी रहते थे। राजा ने यज्ञ करवाया जिसके प्रताप से उन्हें पुत्री रत्न की प्राप्ति हुई। कन्या बड़ी हुई तो उसने सत्यवान को पति के रूप में वर्णन किया. जब यह बात महर्षि नारद को पता लगी तो उन्होंने राजा अश्वपति को बताया कि आपकी बेटी ने जिस युवक का पति के रूप में वर्णन किया है उसकी आयु बहुत कम है। इस पर सावित्री ने पिता से कह दिया कि पति का वरण तो एक बार ही किया जाता है और वह मैने कर लिया है।
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इस बीच सत्यवान के पिता राजा घुुमत्सेन का राजपाट सब छिन गया और वे जंगल में एक पेड़ के नीचे रहने लगे, उनके नेत्रों की रोशनी भी जाती रही. राजा अश्वपति ने वहीं पहुंच कर अपनी बेटी सावित्री का विवाह कर दिया और लौट आए। वन में रहते हुए सावित्री सास ससुर और पति की सेवा करती रही। एक दिन सत्यवान वन में लकड़ी काट रहे थे कि उनके सिर में दर्द हुआ और वे नीचे उतर आए. सावित्री ने उनका सिर अपनी गोद में रख कर दाबने लगी। तभी यमराज अपने दूतों के साथ आए और बोले की सत्यवान का समय पूरा हो गया। मैं इन्हें ले जा रहा हूं।
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इस पर सावित्री भी पीछे पीछे चल पड़ी। यमराज ने सावित्री की पति निष्ठा देख वर मांगने को कहा तो उन्होंने सास ससुर के लिए नेत्र ज्योति मांगी। सावित्री इसके बाद भी चलती रही तो यमराज ने दूसरा वर मांगने को कहा, सावित्री ने अपने सास ससुर के खोए राज्य को मांगा और लोट जाने को कहा. कुछ देर बाद यमराज ने देखा की सावित्र फिर भी चलती चली आ रही है तो अंतिम वर मांगने को कहा जिसमें उन्होंने सत्यवान से सौ पुत्र मांगे। .
अब तो यमराज अत्याधिक प्रसन्न हुए उन्हें यह वरदान देते हुए सत्यवान को मुक्त कर दिया। सावित्री लौट कर जंगल के उसी पेड़ के पास पहुंची जहां सत्यवान पड़े थे, सावित्री के आते ही उनके शरीर में जीवन का संचार हुआ और वे उठ बैठे।
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