Grah Shanti Upay : हिन्दू धर्म के शास्त्रों में कर्म को प्रधान माना गया है और आध्यात्मिक और ज्योतिषीय दृष्टि से देखा जाए तो संपूर्ण विश्व भी कर्म प्रधान है। तुलसीदास जी कहते हैं, “कर्म प्रधान विश्व रचि राखा । जो जस करहि सो तस फल चाखा ॥ सकल पदारथ हैं जग मांही। कर्महीन नर पावत नाहीं ॥” इसका यह अर्थ है कि यह विश्व, यह जगत कर्म प्रधान है। जो जैसा कर्म करता है, उसे वैसा ही फल प्राप्त होता है। मनुष्य का जीवन उसके कर्मों से ही निर्धारित होता है।
Grah Shanti Upay in Astrology
यूँ तो इस जगत ने अनेकों पदार्थ हैं और इस संसार में किसी पदार्थ की कोई कमी नही है, कर्महीन मनुष्य के लिए कुछ भी उपलब्ध नही है। इस संसार में कुछ भी पाने के लिए पहले उद्यम रूपी कर्म करना पड़ेगा तभी कुछ प्राप्त हो सकता है।
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हिन्दू धर्म में ग्रहों के शांति के लिए लोग उपासना, यज्ञ करना या रत्न पहनना जैसे कार्य करते हैं। लेकिन कहा जाता है कि ग्रहों का सीधा संबंध जीवों से है इसलिए यदि जीव से हमारा संबंध अच्छा हुआ तो यह सारे ग्रह हमारे ऊपर अपने शुभ प्रभाव ही छोड़ते हैं। इसलिए वेदों में कहा गया है कि माता-पिता, गुर और अतिथि सभी ईश्वर के समान हैं इनका आदर सम्मान करना चाहिए।
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अभिवादनशीलस्य नित्यं वृद्धोपसेविनः।
चत्वारि तस्य वर्धन्ते आयुर्विद्या यशो बलम् ।।1।।
अर्थात जो व्यक्ति सुशील और विनम्र होते हैं, बड़ों का अभिवादन व सम्मान करने वाले होते हैं तथा अपने बुजुर्गों की सेवा करने वाले होते हैं। उनकी आयु, विद्या, कीर्ति और बल इन चारों में वृद्धि होती है। इसलिए यदि हम जीवों के प्रति दया भाव रखें तो रुष्ट ग्रहों के प्रकोप को कम कर सकते हैं। चूंकि नवग्रह इस चराचर जगत में पदार्थ, वनस्पति, तत्व, पशु पक्षी इत्यादि में अपना वास रखते हैं। इसी तरह ऋषियों ने पारिवारिक सदस्यों और आस पास के लोगों में भी ग्रहों का प्रतिनिधित्व बताया है। आइए जानते हैं-
ज्योतिष शास्त्र के मुताबिक सूर्य को पिता का कारक माना गया है और शनि को पुत्र का कारक माना गया है। इसके साथ ही जब किसी का जन्म होता है तो सूर्य पिता के साथ आत्मा का प्रतिनिधित्व करता है और चंद्रमा मां के साथ मन का, सूर्य और चंद्र के योग को श्वास प्राण कहा जाता है। इसलिए ज्योतिष के अनुसार सूर्य ग्रह रुष्ट है तो पिता को प्रसन्न करें और चन्द्र रुष्ट है तो माता को प्रसन्न करें।
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जबकि बुध रुष्ट है तो मामा और बंधुओं को प्रसन्न करें और गुरु रुष्ट हो तो गुरुजन और वृद्धों को प्रसन्न करें। वहीं शुक्र रुष्ट हो तो पत्नी को प्रसन्न करें और शनि रुष्ट हो तो दास दासी को प्रसन्न करें। साथ ही केतु रुष्ट हो तो कोढ़ी को प्रसन्न करें। यदि कुंडली में सूर्य अशुभ स्थिति में नीच का हो तो कर्मविपाक सिद्धांत के अनुसार यह माना जाता है कि पिता रुष्ट रहे होंगे, तभी जातक सूर्य की अशुभ स्थिति में जन्म पाता है। ऐसे में जातक को अपने पिता की सेवा करनी चाहिए।
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सरन गएँ प्रभु ताहु न त्यागा। बिस्व द्रोह कृत अघ जेहि लागा॥
जासु नाम त्रय ताप नसावन। सोइ प्रभु प्रगट समुझु जियँ रावन॥4॥
गोस्वामी तुलसीदास जी कहते हैं कि जिसे संपूर्ण जगत से द्रोह करने का पाप लगा है, शरण जाने पर प्रभु उसका भी त्याग नहीं करते। जिनका नाम तीनों तापों का नाश करने वाला है, वे ही प्रभु (भगवान) मनुष्य रूप में प्रकट हुए हैं। हे रावण! हृदय में यह समझ लीजिए। इसलिए सेवा भाव ही पाप के दंभ से बचने का श्रेष्ठ उपाय है।
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