Astrology : नवग्रहों (Astrology) में राहु और केतु की भी गणना की जाती है। केतु ग्रह, कुंडली में स्थित 12 भावों पर अलग-अलग (Astrology) तरह से प्रभाव डालता है। इन प्रभावों का असर हमारे प्रत्यक्ष जीवन पर पड़ता है। ज्योतिष में केतु एक क्रूर ग्रह है, परंतु यदि केतु कुंडली में मजबूत होता है तो जातकों को इसके अच्छे परिणाम मिलते हैं जबकि कमज़ोर होने पर यह अशुभ फल देता है। आइए विस्तार से जानते हैं केतु ग्रह के विभिन्न भावों पर किस तरह का प्रभाव पड़ता है –
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राहु और केतु को छाया ग्रह माना गया है। वैसे तो राहु और केतु को पाप ग्रह की श्रेणी में रखा जाता है, लेकिन ज्योतिष शास्त्र के अनुसार केतु का स्वभाव मंगल ग्रह की भांति माना गया है। बता दें कि मंगल ग्रह को नवग्रहों के सेनापति का दर्ज दिया गया है, ऐसे में केतु का स्वभाव भी मंगल की ही भांति होता है।
केतु का स्वभाव: भारतीय ज्योतिष के अनुसार केतु ग्रह व्यक्ति के जीवन क्षेत्र तथा समस्त सृष्टि को प्रभावित करता है। लोगों मानते हैं कि केतु ग्रह सदैव ही अशुभ फल प्रदान करता है, लेकिन ऐसा बिल्कुल भी नहीं है। दरअसल, केतु ग्रह जिस राशि में बैठता है वह उसी के अनुरूप फल देता है। इसलिए केतु का प्रथम भाव अथवा लग्न में फल को वहां स्थित राशि प्रभावित करती है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार कुंडली के दूसरे और आठवें भाव में अगर केतु मौजूद होता है तो यह शुभ फल प्रदान करता है। वहीं ज्योतिषाचार्यों के मुताबिक केतु के पीड़ित होने से जातक को कई प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है।
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केतु के शुभ और अशुभ फल: ज्योतिष शास्त्र के अनुसार यदि किसी जातक की कुंडली में केतु तृतीय, पंचम, षष्टम, नवम एवं द्वादश भाव में हो तो जातक को इसके बहुत हद तक अच्छे परिणाम प्राप्त होते हैं। वहीं ज्योतिषाचार्यों के मुताबिक केतु को अध्यात्म, वैराग्य, मोक्ष और तांत्रिक आदि का कारक माना गया है। इसके अलावा केतु को मान, दुर्घटना, अपमान, घबराहट और आर्थिक तंगी का भी कारक बताया गया है। माना गया है कि अशुभ ग्रह होते हुए भी किसी जातक की कुंडली में केतु शुभ है तो यह रंक को भी राजा बना देता है लेकिन अशुभ है तो राजा को भी रंक बना देता है।
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इस नक्षत्र के लोगों को मिलते हैं शुभ परिणाम: ज्योतिष शास्त्रों के मुताबिक धनु केतु की उच्च राशि है, जबकि मिथनु में यह नीच भाव में होता है। वहीं ज्योतिषियों के मुताबिक केतु तीन नक्षत्रों, अश्विनी, मघा और मूल का स्वामी है। कहा जाता है कि इन नक्षत्रों में जन्में लोगों को हमेश शुभ परिणाम मिलते हैं। ऐसे लोगों को अपने कार्यक्षेत्र और करियर में खूब सफलता प्राप्त होती है।
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दुष्प्रभाव से बचने के उपाय: राहु और केतु दोनों जन्म कुण्डली में काल सर्प दोष का निर्माण करते हैं। जबकि ज्योतिषाचार्यों का ऐसा मानना है कि अगर किसी व्यक्ति की कुंडली में केतु गलत स्थान पर बैठा है तो उसकी जिंदगी में उथल-पुथल मच जाती है। केतु के दुष्प्रभाव से बचने के लिए भगवान गणेश की आराधना करनी चाहिए। ज्योतिष के मुताबिक बुधवार के दिन भगवान गणेश की पूजा के साथ ही अथर्वास्तोत्र का पाठ करने से शुभ फलों की प्राप्ति होती है।
केतु का वैदिक मंत्र: ॐ केतुं कृण्वन्नकेतवे पेशो मर्या अपेशसे। सुमुषद्भिरजायथा:।।
केतु का तांत्रिक मंत्र: ॐ कें केतवे नमः
केतु का बीज मंत्र: ॐ स्रां स्रीं स्रौं सः केतवे नमः
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