कुलदेवता Kuldevta या कुलदेवी की पूजा आदिकाल से चलती आ रही है इनके आशिर्वाद के बिना कोई भी “शुभ कार्य” संपन्न नही होता है क्योकि ये कुल की रक्षा के लिए अपनी पारलौकिक शक्तियों से हमेशा एक सुरक्षाचक्र बनाये रखते है। इनकी कृपा से ही कुल वंश की प्रगति होती है।आपने देखा होगा कि कुछ लोग बहुत पूजा पाठ करते है, बहुत धार्मिक है फिर भीे परिवार में सुख-शांति, समृद्धि नही है। बेटा नशेड़ी और बेरोजगार होता है, पढ़ा-लिखा पुत्र अपने पिता से बहुत ही अभद्रतापूर्ण रवैय्ये से व्यवहार करता है, लड़ाई होती रहती है, धन जिस गति से घर में आता है उससे दुगुनी गति से घर के बाहर निकल जाता हैं।
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शादी ही नही होती या शादी किसी तरह हो भी जाये तो संतान नही होती । ये सभी स्पष्ट और 101% तय संकेत है की आपके कुलदेव या देवी आपसे रुष्ट है। आपके ऊपर से “सुरक्षा चक्र” हट चुका है जिसके कारण अब नकारात्मक शक्तिया आप पर हावी हो जाती है । फिर चाहे आप कितना पूजा पाठ करवा लो, सभी प्रकार के रत्न-नागमणि-पारसमणि धारण कर लो, कोइ लाभ नही होगा। आँखे बन्द कर लेने से रात नही हो जाती, सत्य सत्य ही रहेगा जो हमारे बुजुर्ग हमें समझाते आये है वही कटु सत्य है।
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यदि आप ज्योतिष को नहीं मानते हो तो भी हमें आपसे किंचित मात्र आपत्ति नहीं है परंतु यदि आप सदियों से चली आ रही धार्मिक मान्यताओं का अनुसरण करते हो तो ये लेख आपके लिये बहुत अधिक लाभकारी सिद्ध होगा।
आधुनिक ज्योतिषी जहाँ संकट आने पर जातकों को 50-60 हजार का पुखराज या नीलम चिपकाने के चक्कर में रहते है तो कुछ एक-डेढ़ लाख की शांति का अवसर खोजते है, परंत तजुर्बेकार और बुजुर्ग ज्योतिषी सदैव जातकों को नेक सलाह देते है कि अपने कुलदेवता का पता लगाकर स्थानविशेष जाकर मत्था टेक आओ , उसके बाद ही कोई उपाय काम करेंगे।
किसी भी व्यक्ति की पहचान सर्वप्रथम उसके कुल से होती है। प्रत्येक व्यक्ति का जिस प्रकार नाम होता है, गोत्र होता है, उसी प्रकार उनका कुल भी होता है। ‘कुल’ का यहाँ शाब्दिक अर्थ खानदान और वंशबेला परम्परा से हैं। अपने कुल और गोत्र सदैव ध्यान रखना तो आवश्यक ही है क्योंकि प्रत्येक कुल परम्परा में उस कुल के पूजित देवी-देवता अवश्य होते हैं, इसलिए वार, त्यौहार, पर्व आदि पर स्वर्गीय दादा, परदादा के साथ ही कुलदेवता अथवा कुलदेवी को भोग अर्पण अवश्य ही किया जाता है|
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हमारे पूर्वज अपने साथ “कुल और जाति” के लोगों को संगठित और बचाये रखने के लिए एक स्थानविशेष पर मंदिर बनाते थे, जहां उनके कुल के बिखरे हुए लोग इकट्ठा हो सकें। मंदिर से जुड़े व्यक्ति के पास एक बड़ी सी पोथी होती थी जिसमें वह उन लोगों के नाम,पते और गोत्र दर्ज करते थे, जो वहाँ दर्शन करने आते थे। इस तरह एक ही कुल के लोगों का एक डाटा तैयार हो जाता था। आपको अपने परदादा के परदादा का नाम नहीं मालूम होगा लेकिन उन तीर्थ पुरोहित के पास आपके पूर्वजों के नाम लिखे होते थे पर अफ़सोस मित्रों, जब हम उस काल में राममंदिर तक नहीं बचा सके तो सोचिये हमारे पूर्वजों के छोटे मंदिर कैसे बच पाते, हमारे ग्रंथालय (Library) जला दिये गये। यही कारण है कि आपको सिर्फ अपने परदादाओ तक के ही नाम पता होंगे।
यदि किसी को अपने कुलदेवी और देवताओं के बारे में नहीं मालूम है, तो उन्हें अपने बड़े-बुजुर्गों, रिश्तेदारों या पंडितों से पूछकर इसकी जानकारी लेना चाहिए। उनकी शरण में जाओ अपनी भूल की क्षमा माँगो l
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अंत में एक जरूरी बात- अपने पिता के साक्षात पैर छूने में और कुछ 30-40 वर्ष बाद उनकी माला टंगी फ़ोटो में उनके पैर छूने में फर्क है या नहीं.. या फिर अपने पिता से आमने-सामने बात करने और वीडियो कॉल पे बात करने में फर्क है या नहीं.. हो सकता है कि आपके कुलदेवता आपसे बहुत दूर हो,कोई अभी लंदन से ये पढ़ रहा हो अब वो गुरुदासपुर तो आ नही सकता,ऐसे में अपने किसी Blood Relative को स्थानविशेष पर भेजकर आपके नाम से क्षमास्तुति मंगवायी जा सकती है या आपके नाम से कोई चढ़ावा चढ़ाया जा सकता हैं। आपको कुलदेवता के Location (स्थानविशेष) पर ही जाना पड़ेगा, घर बैठें मोबाइल पर उनकी फोटो देखकर या घर मे स्तुति से काम नहीं चलेगा। कोशिश कीजिये वर्ष में कम से कम एक बार या कुछेक वर्षों में वहाँ जाकर माथा टेक आये और इसकी जानकारी अपने बच्चों की भी दे। दर्शन करने जाओ तो अपने साथ गाय या अन्य जीवों के लिये रोटियाँ, पक्षियों के लिये सतनाजा या रास्ते में नदी लगे तो आटे की गोलियाँ सदैव साथ लेकर निकले,इससे आपकी पूजा का शुभ फल कई-कई गुना बढ़कर मिलेगा मित्रों। कुल देवता ही आपको समस्त प्रकार के वैभव, उन्नति, शक्ति, प्रतिष्ठा, सुख-शांति प्रदान करने में सक्षम होते हैं।