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Birth time जन्म समय शुद्धीकरण क्यों और कैसे ?

Artical by Sh. D.K.Gupta, Delhi

Birth time हमारे लिये सबसे पहला प्रश्न यह है कि किस जन्म समय को सही माना जाये ? जन्म समय में कुछ पलों का अन्तर भी जन्म कुंडली की व्याख्या में निर्णायक होता है। क्योंकि इस विषय पर ज्योतिष के विद्वानों के अलग-अलग मत है-  जैसे बच्चा जब जन्म लेता है, या रोता है या फिर उसकी नाल जब काटी जाती है या उस वक्त जब आत्मा उसके अंदर प्रवेश करती है- या फिर इस संसार में आने के साथ जब वो पहला श्वास लेता है। इसकी सुक्ष्मता को समय और स्थिति के साथ पकड़ना काफी मुश्किल होता है। हमें जो समय अस्पताल से दिया जाता  है – उसी समय को लेकर चलना होता है।

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 हम यह जानते हैं कि ३ सेकेण्ड की दर से बच्चे जन्म ले रहे हैं और हर बच्चे का जन्म समय का चार्ट अपने आप में अलग खास होता है। हमको जो जन्म समय दिया जाता है उसके आधार पर हम चार्ट कास्ट करते हैं तथा चार्ट मेल का है या फिमेल का तथा जन्म लग्न की राशि को तय करके आगे बढ़ते हैं।

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जन्म समय जो कि अस्पताल से दिया जाता है उसमें शुद्धिकरण इसलिए आवश्यक होता है क्योंकि चार्ट हमेशा से बनते हैं पर अस्पताल की घड़िया या हमारी घड़ी भी जी.एम.टी से नहीं मिलती इसलिए कुछ अन्तर स्वाभाविक ही होते हैं–जैसा कि हम जानते हैं कि पृथ्वी २४ घंटे में ३६० डिग्री अपनी कक्ष का परिभ्रमण करती है और १ सेकेण्ड में यह भ्रमण कितना हो जाता है यह काफी प्रभावी होता है- जन्मांग चक्र की सटीक भविष्यवाणी के लिए इसलिए बी.टी.आर की आवश्यकता जरुरी ही होती है।

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आइये जन्म समय को शुद्धिकरण की तकनिक की तरफ आगे बढ़े इसमें इस बात का मुख्य ध्यान रखा जाना चाहिए कि लग्न का सब-सब लोर्ड का चन्द्रमा के नक्षत्र से संबंध  होना चाहिए- क्योंकि चन्द्रमा का स्टार लोर्ड अर्थात नक्षत्र मालिक उस दिन का मुख्य आरपी भी होता हैऔर वो जीवन में घटने वाली घटनाओं का कारक भी होता है। हम अस्पताल के द्वारा दिये समय को लेकर आगे बढ़ते है पर उस चार्ट से पिता के गोचर में यह स्थिति देखते हैं कि क्या पिता के घर से बच्चे के जन्मने अर्थात संतान प्राप्ति का संकेत उस दिन मिल रहा है। अगर यह संकेत नहीं मिलता तब जन्म समय को आगे-पीछे करके समय को सेट किया जाता है। उस वक्त पिता के गोचर में २-५, ११ की स्थिति जन्म लग्न या चन्द्रमा लग्न की तरफ से आनी पड़ती है।

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अब उसके माता-पिता, बड़े व छोटे भाई बहन के आधार पर विश्लेषण को परखा जाता है अगर शादी हो गई तो बच्चों के जन्मने की स्थिति से सुक्ष्म गणना तक पहुंचा जाता है , इसके लिए अतीत में हुई घटनाओं को भी जन्म चार्ट में लगाया  जाता है। इसमें दादा-पिता की मृत्यु की तारीख काफी प्रभावी होती है। १२ भावो  के हिसाब से घटी घटनाओं को देखकर जन्म समय में परिवर्तन करके सटीक समय तब सेट किया जाता है। इसमें विशोंतरी महादशा का भी प्रयोग भी काफी प्रभावी होता है।

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महेश कुमार शिवा ganeshavoice.in के मुख्य संपादक हैं। जो सनातन संस्कृति, धर्म, संस्कृति और हिन्दी के अनेक विषयों पर लिखतें हैं। इन्हें ज्योतिष विज्ञान और वेदों से बहुत लगाव है।
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