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Apple के मालिक रहे बाबा नीम करौरी के अनुयायी, कम लोग ही जानते हैं संत के ये चमत्कार

Apple नीम करोली बाबा 20वीं सदी के एक महान संत हैं. (Apple) बाबा की महिमा दूर-दूर तक फैली थी. उनका दर्शन करने के लिए देश ही नहीं बल्कि विदेशों से भी भक्त खिंचे चले आते थे. लेकिन बाबा किसी से भी पैर नहीं छुलवाते थे. (Apple) नीम करोली बाबा उन आध्यात्मिक संतों में शुमार हैं, जिनके बारे में कई किवदंतियां प्रचलित हैं. बाबा का जन्म उत्तर प्रदेश के फिरोजाबाद जिले (अकबरपुर गांव) में हुआ था. नीम करोली बाबा को उनके भक्त हनुमान जी का अवतार भी बताते हैं. उनके भक्तों में एपल कंपनी के CEO स्टीव जॉब्स से लेकर हॉलीवुड की दिग्गज एक्ट्रेस जूलिया रॉबर्ट्स तक शामिल हैं.

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‘नीम करोली बाबा के आराध्य हनुमान जी’
कहा जाता है कि नीम करोली बाबा को 17 वर्ष की आयु में ही ईश्वर का साक्षात्कार हो गया था. वे बजरंगबली को अपना गुरु और आराध्य मानते थे. नीम करोली बाबा ने अपने जीवनकाल में करीब 108 हनुमान मंदिरों का निर्माण कराया. लाखों भक्त होने के बावजूद वो आडंबर से दूर सादगी से रहना पसंद करते थे.

चमत्कारी संत नीम करौली बाबा
बाबा नीम करोली की उत्तराखंड में ही नहीं, बल्कि विदेशों में भी इनके चमत्कारों की चर्चा होती रहती है. यहां तक की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Modi) से फेसबुक/मेटा के CEO मार्क जुकरबर्ग भी बाबा के बारे में चर्चा कर चुके हैं. बाबा अंतर्यामी थे जो सबके भूत-भविष्य और वर्तमान के बारे में सबकुछ जानते थे.

1. बाबा के चमत्कारों के बारे में बताया जाता है कि एक बार बाबा के धाम में आयोजित भंडारे के दौरान घी की कमी पड़ गईं और बाबा के आदेश पर आश्रम से नीचे बहती नदी के पानी को घी के रूप में उपयोग किया गया, ऐसे में जैसे ही प्रसाद में पानी डाला गया उसने घी का ही रूप ले लिया.

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2. यह भी कहा जाता है कि बाबा अपनी दैवीय ऊर्जा से अचानक ही कहीं भी भक्तों के बीच प्रकट हो जाते थे और फिर अचानक ही लुप्त भी हो जाते थे. यहां तक की वे जिस वाहन में बैठे हो उसका पीछा करने या फिर पैदल चलते समय उनका पीछा करने पर भी वो अचानक ही विलुप्त हो जाते थे.

3. बाबा के चमत्कारों को लेकर एक जनश्रुति ये है कि एक बार बाबा ट्रेन के फर्स्ट क्लास कम्पार्टमेंट में सफर कर रहे थे. बाबा के पास टिकट नहीं था. जब टीटी ने उनसे टिकट मांगा और बाबा उसे टिकट नहीं दे सके तो टिकट चेकर ने बाबा को अगले स्टेशन ‘नीम करौरी’ में ट्रेन से उतार दिया था. इस पर बाबा वहीं बैठ गए. इसके बाद जब ट्रेन को स्टेशन से रवाना करने के लिए स्टेशन मास्टर ने हरी झंडी दिखाई तो ट्रेन आगे न बढ़ सकी. इस पर कुछ लोगों ने बाबा को पहचान लिया और उन्होंने टिकट चेकर को को बाबा से माफी मांगने और उन्हें सम्मान पूर्वक अंदर बैठाने को कहा. टिकट चेकर ने ने बाबा से माफी मांगी के बाद और उन्हें ट्रेन में बैठाया. इतने में ही ट्रेन चल पड़ी. तभी से बाबा का नाम नीम करौरी पड़ गया.

4. नीम करौरी बाबा का वास्तविक नाम लक्ष्मीनारायण शर्मा था. उनके पिता का नाम दुर्गा प्रसाद शर्मा था. 11 वर्ष की उम्र में ही बाबा का विवाह हो गया था और 17 वर्ष की उम्र में ही उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हो गई थी, जिसके बाद उन्होंने अपना घर छोड़ दिया था. वह हनुमान जी की उपासना किया करते थे. उन्हें वह अपना गुरु भी मानते थे.

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5. घर छोड़ने के बाद बाबा साधुओं की भांति विचरण करने लगे थे. तब वो लक्ष्मण दास, हांडी वाले बाबा और तिकोनिया वाले बाबा समेत कई नामों से जाने जाते थे. कहा जाता है कि बाबा ने गुजरात के ववानिया मोरबी नामक जगह पर तपस्या कर कई सिद्धियां हासिल की. यहां उन्हें तलईया बाबा के नाम से लोगों ने पुकारना शुरू कर दिया था.

6. बाबा के भक्त और जाने-माने लेखक रिचर्ड अल्बर्ट ने अपनी पुस्तक ‘मिरेकल आफ लव’ में बाबा के इन चमत्कारों काे विस्तार से लिखा है. यह किताब बाबा के जीवन पर ही आधारित है. इसी किताब में रिचर्ड अल्बर्ट ने ‘बुलेटप्रूफ कंबल’ के नाम से बाबा की एक और घटना का जिक्र किया. रिचर्ड ने लिखा है कि बाबा हमेशा कंबल ही ओढ़ा करते थे.

7. बाबा नीम करौरी के दो पुत्र और एक पुत्री भी हैं. बड़े बेटे अनेक सिंह अपने परिवार के साथ भोपाल में रहते थे. जबकि छोटे बेटे धर्म नारायण शर्मा वन विभाग में रेंजर थे. हाल ही में उनका निधन हुआ था.

8. बाबा धार्मिक स्थलों पर जाया करते थे. 9 सितंबर 1973 को बाबा कैंची धाम से वृंदावन के लिए रवाना हुए. यह बाबा की अंतिम यात्रा थी. 10 सितंबर को वह वृंदावन पहुंचे और 11 सितंबर 1973 को वृंदावन में ही उन्होंने अपने शरीर का त्याग कर दिया था. यहां भी बाबा ने एक आश्रम बनवाया था. जहां आज भी बाबा के भक्त पहुंचते हैं. आज बाबा को भौतिक शरीर छोड़े हुए भले ही 49 साल हो गए हों, लेकिन उनके भक्तों को उनकी मौजदूगी का अहसास आज भी होता है.

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बाबा का आश्रम
साल 1961 में वे पहली बार नैनीताल के भवाली से करीब 7 किलोमीटर दूर कैंची नामक जगह पहुंचे, जहां 15 जून, 1964 को उन्होंने अपना आश्रम बनावाया. इसमें उनके मित्र पूर्णानंद ने सहयोग दिया था. ये आश्रम आज देश ही नहीं, विदेशों में भी बाबा के अनुयायियाें की आस्था का केंद्र है. कैंची धाम में हर वर्ष मंदिर के स्थापना दिवस पर मेला लगता है. जिसमें भंडारा भी होता है. यहीं पर उनके भक्तों ने पहली बार बाबा की सिद्धियों को देखा था. इसी आश्रम में फेसबुक के सीईओ मार्क जुकरबर्ग, एप्पल के संस्थापक स्टीव जाॅब्स आए थे. कहा तो यह भी जाता है कि इसी कैंची धाम आकर उनकी पूरी जिंदगी बदल गई.

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